श्री हित चौरासी जी Shri Hit Chaurasi Ji
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श्री हित चौरासी क्या है यह एक धार्मिक ग्रंथ है जिसमें 84 पद हैं और इसके रचनाकार श्री हित हरिवंश जी है उपयुक्त ग्रंथ भगवान जी श्री कृष्ण जी की लीलाओं का और महिमाओं का वर्णन दर्शाता है । श्री हित हरिवंश जी श्री हित चौरासी जी प्रारंभ निगम-अगोचर बात कहा कहौं अतिहि अनौखी । उभय मीत की प्रीति-रीति चोखी ते चोखी ॥ वृन्दावन छबि देखि-देखि हुलसत हुलसावत । जल-तरंगवत् गौर-श्याम विलसत विलसावत ॥ ललितादिक निज सहचरी, निरखि-निरखि बलि जात नित । चौरासी हित पद कहे, चतुरन कौ यह परम वित ॥ ।।1।। जोई-जोई प्यारौ करै सोई मोहि भावै, भावै मोहि जोई सोई-सोई करै प्यारे । मोकों तो भावती ठौर प्यारे के नैंनन में, प्यारौ भयौ चाहै मेरे नैंनन के तारे ।। मेरे तन मन प्राण हूँ ते प्रीतम प्रिय, अपने कोटिक प्राण प्रीतम मोंसों हारे । जय श्रीहित हरिवंश हंस-हंसिनी साँवल-गौर, कहौ कौन करै जल-तरंगनी न्यारे ।।1।। ।।2।। प्यारे बोली भामिनी आजु नीकी जामिनी, भेंट नवीन मेघ सों दामिनी । मोहन रसिक-राइरी माई, तासौं जु-मान करै, ऐसी कौन कामिनी । (जै श्री) हित हरिवंश श्रवण सुनत प्यारी, राधिका रवन सों मिली गज-गामिनी ।।...