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Showing posts from July, 2025

श्री हित चौरासी जी Shri Hit Chaurasi Ji

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श्री हित चौरासी क्या है  यह एक धार्मिक ग्रंथ है जिसमें 84 पद हैं और इसके रचनाकार श्री हित हरिवंश जी है उपयुक्त ग्रंथ भगवान जी श्री कृष्ण जी की लीलाओं का और महिमाओं का वर्णन दर्शाता है ।  श्री हित हरिवंश जी  श्री हित चौरासी जी प्रारंभ  निगम-अगोचर बात कहा कहौं अतिहि अनौखी । उभय मीत की प्रीति-रीति चोखी ते चोखी ॥ वृन्दावन छबि देखि-देखि हुलसत हुलसावत । जल-तरंगवत् गौर-श्याम विलसत विलसावत ॥ ललितादिक निज सहचरी, निरखि-निरखि बलि जात नित । चौरासी हित पद कहे, चतुरन कौ यह परम वित ॥  ।।1।। जोई-जोई प्यारौ करै सोई मोहि भावै, भावै मोहि जोई सोई-सोई करै प्यारे । मोकों तो भावती ठौर प्यारे के नैंनन में, प्यारौ भयौ चाहै मेरे नैंनन के तारे ।। मेरे तन मन प्राण हूँ ते प्रीतम प्रिय, अपने कोटिक प्राण प्रीतम मोंसों हारे । जय श्रीहित हरिवंश हंस-हंसिनी साँवल-गौर, कहौ कौन करै जल-तरंगनी न्यारे ।।1।। ।।2।। प्यारे बोली भामिनी आजु नीकी जामिनी, भेंट नवीन मेघ सों दामिनी । मोहन रसिक-राइरी माई, तासौं जु-मान करै, ऐसी कौन कामिनी । (जै श्री) हित हरिवंश श्रवण सुनत प्यारी, राधिका रवन सों मिली गज-गामिनी ।।...

श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष अर्थ सहित Shri Krishna Krupa Kataksh

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श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष के बारे में   श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र स्वयं भगवान शंकराचार्य द्वारा रचित है इसमे कुल 9 श्लोक है। ये श्लोक संस्कृत मे लिखे गए । भगवान शंकराचार्य ने इस स्त्रोत की रचना कर जन साधारण के लिए श्री कृष्ण के भक्ति मार्ग सुगम और सरल बना दिया।  श्री कृष्ण प्रारंभ स्तोत्र  सर्वप्रथम भगवान शंकराचार्य ने श्री कृष्ण की स्तुति इन श्लोको से की है – मूकं करोति वाचालं पंगु लंघयते गिरिम्। यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्।। अर्थात्-जिनकी कृपा से गूंगे बहुत बोलने लगते हैं; पंगु पहाड़ को लांघ जाते हैं, उन परमानंद स्वरूप माधव की में वन्दना करता हूँ। भगवान स्वयं नारदजी से कहत – नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न च। मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।। अर्थात्-भगवान तो केवल वहीं विराजते हैं, जहां उनके भक्त उनका गुणगान करते हैं। ‘कलौ केशव कीर्तनात्’-कलिकाल मे भगवान केशव का कीर्तन ही भवसागर से पर होने का एकमात्र साधन है। (श्लोक – 1) व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं, स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्। सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं, अनंगरंगसागरं नमामि कृष्...

श्री राधा चालीसा Shri Radha Chalisa

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नाम लाभ राधा चालीसा  परम करुणामयी श्री राधारानी का श्री नाम इस संसार के भाव से पार लगाने वाला है । श्री राधा चालीसा का पाठ करने से श्री प्रिय-प्रियतम के निज धाम वृंदावन मे वास करने का फल प्राप्त होता है और उनके चरणो के छावँ मे प्राणी मात्र स्वयं को इस भयावह संसार से दूर रख सकता है श्री राधा रानी  ।।दोहा।। श्री राधे वुषभानुजा , भक्तनि प्राणाधार । वृन्दाविपिन विहारिणी , प्रानावौ बारम्बार ।। जैसो तैसो रावरौ, कृष्ण प्रिय सुखधाम । चरण शरण निज दीजिये सुन्दर सुखद ललाम ।। ।।चौपाई।। (श्लोक – 1) जय वृषभानु कुँवरी श्री श्यामा, कीरति नंदिनी शोभा धामा ।। नित्य बिहारिनी श्याम आधारा, अमित मोद मंगल दातारा ।।1।। (श्लोक – 2) रास विलासिनी रस विस्तारिणी, सहचरी सुभग यूथ मन भावनी ।। नित्य किशोरी राधा गोरी , श्याम प्राणधन अति जिय भोरी ।। करुणा सागर हिय उमंगिनी, ललितादिक सखियन की संगिनी ।।2।। (श्लोक – 3) दिनकर कन्या कुल विहारिनी, कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनी ।। नित्य श्याम तुमररौ गुण गावै, राधा राधा कही हरशावै ।।3।। (श्लोक – 4) मुरली में नित नाम उचारें, तुम कारण लीला वपु धारें ।। प्रेम स्वरूपिणी अत...

श्री वृन्दावन सतलीला अर्थ सहित Shri Vrindavan Satleela Hindi Mein

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 सतलीला के बारे में श्री वृन्दावन सतलीला में कुल 116 श्लोक है और यह वाणी रसिक संत श्रीहित ध्रुवदास जी महाराज द्वारा कृत है ! पाठकों हेतु सब श्लोकों का अनुवाद भी लिखा गया है ! श्री हित ध्रुवदास जी महाराज श्लोक प्रारंभ प्रथम नाम हरिवंश हित, रट रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइयै, अरु वृंदावन ऐन ॥1 श्रीहितध्रुवदास जी कहते हैं – हे जिह्वा ! तू सर्वप्रथम प्रेम मूल श्रीहित हरिवंश नाम ही सतत् रट, इसी परम मधुर नाम का ही गान कर। क्योंकि इस नाम की रटन के फलस्वरूप ही श्री हित युगल की अद्भुत प्रीति रीति और श्री वृंदावन रूपी विश्राम प्राप्त होगा। चरन सरन हरिवंश की, जब लगि आयौ नाहिं। नव निकुंज निजु माधुरी, क्यौं परसै मन माहिं।।2।। जब तक प्रकट प्रेम स्वरूप श्री हरिवंश के श्री चरणों की शरण न ली जाए, तब तक नित्य निकुंज की नित्य नवायमान रस माधुरी को मन स्पर्श भी कैसे कर सकता है अर्थात् नहीं कर सकता। वृंदावन सत करन कौं, कीन्हौं मन उत्साह। नवल राधिका कृपा बिनु, कैसे होत निबाह ॥3॥ श्री हित ध्रुवदास जी कहते हैं कि मेरे मन ने ” श्री वृंदावन सत”ग्रंथ रूपी श्री वृन्दावन का गुणगान करने का उत्साह तो किया है प...

श्री बांके बिहारी जी विनय पचासा Shri Baanke Bihari Ji Vinay Pachasa

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 श्री बांके बिहारी विनय पचासा एक ऐसा पाठ है जो भक्तो को मन, वचन, और कर्म को भगवान की सेवा में समर्पित करता है ! इसमें श्री बांके बिहारी जी के आकर्षण रूप का वर्णन है ! उनके नयन, केश, भुजा, और पोशाख के बारे में गया गया है ! बांकी चितवन कटि लचक, बांके चरन रसाल, स्वामी श्री हरिदास के बांके बिहारी लाल ॥ श्री बांके बिहारी जी  ।। चौपाई ।। जै जै जै श्री बाँकेबिहारी । हम आये हैं शरण तिहारी ॥ स्वामी श्री हरिदास के प्यारे । भक्तजनन के नित रखवारे ॥ श्याम स्वरूप मधुर मुसिकाते । बड़े-बड़े नैन नेह बरसाते ॥ पटका पाग पीताम्बर शोभा । सिर सिरपेच देख मन लोभा ॥ तिरछी पाग मोती लर बाँकी । सीस टिपारे सुन्दर झाँकी ॥ मोर पाँख की लटक निराली । कानन कुण्डल लट घुँघराली ॥ नथ बुलाक पै तन-मन वारी । मंद हसन लागै अति प्यारी ॥ तिरछी ग्रीव कण्ठ मनि माला । उर पै गुंजा हार रसाला ॥ काँधे साजे सुन्दर पटका । गोटा किरन मोतिन के लटका ॥ भुज में पहिर अँगरखा झीनौ । कटि काछनी अंग ढक लीनौ ॥ कमर-बांध की लटकन न्यारी । चरन छुपाये श्री बाँकेबिहारी ॥ इकलाई पीछे ते आई । दूनी शोभा दई बढाई ॥ गद्दी सेवा पास बिराजै । श्री हरिदास छवी अ...

श्री बांके बिहारी जी अष्टक Shri Baanke Bihari Ji Ashtak

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 श्री कुंज बिहारी भगवान कृष्ण के कई नामों में से एक है, जहाँ बिहारी शब्द कृष्ण के लिए है और कुंज वृंदावन का प्रतिनिधित्व करते हैं । श्री बांके बिहारी जी छवि  Shri Baanke Bihari Ji Ashtak – श्री बांके बिहारी जी अष्टक बांके बिहारी मंदिर में प्रतिदिन गाया जाता है. इसमें आठ श्लोक है. जिसमें भक्त अलग अलग भावो से कहता है की वो श्री बिहारी जी के चरणारविन्द की शरण में है। श्री बांके बिहारी जी अष्टक 1॥ य: स्तूयते श्रुतिगणैर्निपुणैरजस्रं, सम्पूज्यते क्रतुगतै: प्रणतै: क्रियाभि:। तं सर्वकर्मफ़लदं निजसेवकानां, श्रीमद्‍ विहारिचरणं शरणं प्रपद्ये॥1॥ अर्थ:- जो वेद मन्त्रों के द्वारा नित्य स्तुत्य हैं, यज्ञों में समर्पित क्रियाओं के द्वारा जो नित्य सम्पूजित हैं, अपने भक्तों को सम्पूर्ण कर्मों का फल प्रदान करने वाले , उन श्री बिहारी जी के चरणारविन्द की शरण में हूँ। ॥2॥ यं मानसे सुमतयो यतयो निधाय, सद्यो जहु: सहृदया हृदयान्धकारम्। तं चन्द्रमण्डल-नखावलि-दीप्यमानं, श्री मद्‍ विहारिचरणं शरणं प्रपद्ये॥2॥ अर्थ:-जिन भगवान के चरणों को सात्विक मति वाले भक्त जन अपने मानस पटल पर स्थापित करके हृदय के अन्धकार...

गोपी गीत – जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः Gopi Geet Hindi

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 ‘श्रीमद् भगवत महापुराण जो कि योगेश्वर श्रीकृष्ण का साक्षात् वाङ्मय स्वरुप है, के दशम स्कन्ध को भगवत का हृदय माना जाता है और उसके इन श्लोकों को श्रीमद् भगवत का प्राण माना जाता है॥ श्लोक 1 गोपी गीत ॥ 1 ॥ जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि । दयित दृश्यतां दिक्षु तावका- स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥ १॥ भवार्थ – हे प्रियतम प्यारे! तुम्हारे जन्म के कारण वैकुण्ठ आदि लोको से भी अधिक ब्रज की महिमा बढ़ गयी है तभी तो सौंदर्य और माधुर्य की देवी लक्ष्मी जी स्वर्ग छोडकर यहाँ की सेवा के लिए नित्य निरंतर निवास करने लगी है हे प्रियतम देखो तुम्हारी गोपियाँ जिन्होंने तुम्हारे चरणों में ही अपने प्राण समर्पित कर रखे है वन वन में भटक ढूँढ रही है. श्लोक 2 गोपी गीत शरदुदाशये साधुजातस- त्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा । सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका वरद निघ्नतो नेह किं वधः ॥ २॥ भवार्थ – हे हमारे प्रेम पूरित ह्रदय के स्वामी ! हम तो आपकी बिना मोल की दासी है तुम शरदऋतु के सुन्दर जलाशय में से चाँदनी की छटा के सौंदर्य को चुराने वाले नेत्रो से हमें घायल कर चुके हो. हे प्रिय !अस्त्रों से हत्या करन...