Quote of Ranier Maria Rilke रेनर मारिया रिल्के के कोट्स उद्धरण

   रेनर मारिया रिल्के के कोट्स उद्धरण 

  • एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के प्रति प्रेम महसूस करना, शायद यह सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है, जो मनुष्यों को दी गई है। यही अंतिम संकट है। यह वह कार्य है जिसके लिए बाकी सभी कार्य मात्र एक तैयारी हैं।
  • मैं इसे दो संबंधों के बीच की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी मानता हूँ। प्रत्येक एक-दूसरे के एकांत का प्रहरी हो।
  • अपने भीतर सब कुछ घटित होने दो। सुंदरता और भय। कोई भी संवेदना अंतिम नहीं है।
  • देखना और काम करना-यहाँ कितना अलग है। आप चारों तरफ़ नजरें दौड़ाइए और बाद में उस पर सोचिए, यहाँ सब कुछ तक़रीबन एक ही जैसा है।
  • मुझे लगता है शरद के सिवा ऐसा कोई समय नहीं जब हमारी साँस में मिट्टी की बस एक गन्ध महसूस होती है-पकी हुई मिट्टी की। यह गन्ध समुद्र की गन्ध से कमतर नहीं है। समुद्र की लहरें जब दूर रहती हैं, तब उसकी गन्ध में एक कड़वापन रहता है, लेकिन जब वह एक स्वर के साथ पृथ्वी तट को छूती है तो उसमें मीठापन आ जाता है। यह अपने भीतर एक गहराई को समेटे होती है|
  • आख़िरकार ख़तरे उठाने और अनुभव के उस छोर तक पहुँचने से ही कलाकृतियों का निर्माण सम्भव हो पाता है, जिससे आगे कोई और नहीं जा सकता। इस यात्रा में हम ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते जाते हैं हमारा अनुभव निजी, वैयक्तिक और विलक्षण होता जाता है और इससे जो चीज़ सामने आती है वह इसी विलक्षणता की लगभग हूबहू अभिव्यक्ति होती है।
  • कला में आप 'बहुत अच्छा' के भीतर ही रहते हैं। और जब तक आप इसके भीतर रहते हैं यह बढ़ता ही रहता है और आपको पार कर आगे निकल जाता है। मुझे लगता है कि सर्वोच्च अन्तर्दृष्टि और सूझ उसे ही हासिल होती है जो अपने काम के भीतर रहता है और वहाँ टिका रहता है, लेकिन जो उनसे दूरी बनाये रखता है वह उन पर अपनी पकड़ नहीं रख पाता।
  • कुछ चीजें स्वाभाविक रूप से इतनी आकर्षक होती हैं कि उनके आगे कुछ और नहीं टिकता। ऐसा माना जाता है कि अपने काम के स्वरूप को लेकर हमारा स्पष्ट नज़रिया होना चाहिए, उस पर मज़बूत पकड़ हो, और सैकड़ों ब्योरे तैयार करके उसे समझना चाहिए। मैं महसूस करता हूँ और मुझे पक्का विश्वास है कि वैन गॉग को भी किसी मोड़ पर ऐसा अहसास जरूर हुआ होगा कि अभी तक कुछ नहीं हुआ है, सब कुछ मुझे ही करना है।
  • उस कारण को ढूँढ़ो जो तुम्हारे भीतर लिखने की इच्छा पैदा करता है, झाँक कर देखो क्या उस कारण की जड़ें तुम्हारे हृदय की गहराइयों तक फैली हैं? और फिर अपने आप से स्वीकार करो कि यदि तुम्हें लिखने से रोका गया तो तुम जी नहीं पाओगे।
  • किअर्केगार्ड के अनुसार सभी चीजों में पक्षियों की तरह पर्याप्त धैर्य और उड़ान की इच्छा रखता हूँ। स्वेच्छा से आँख मूँद कर पूरे धैर्य के साथ, प्रतिरोध के बीच चमकने का मक़सद लिये किये गये दैनन्दिन के कार्य दरअसल ऐसे विधान हैं, जो हमें नियन्त्रित करने की ईश्वर की आकांक्षा में बाधक नहीं हैं। रात दर रात हम जीवन के अध्यायों को बिना व्यवधान के ढक सकते हैं, बिना उनसे कोई विचार लिये जो ईश्वर की शरण में होते हैं।
  • निश्चय ही, हमारे पास एक उच्चतम स्तर पाने के लिए अपना सब कुछ झोंक देने और दाँव पर लगा देने के सिवा और कोई विकल्प नहीं है। लेकिन जब तक वह चीज़ कलाकृति में आ न जाए, तब तक हम उसके बारे में मौन रखने के लिए बाध्य हैं।
  • प्यार में बस इतनी कोशिश करनी है– एक-दूसरे को मुक्त करो। कि साथ आसानी से संभव होता है। हमें इसे सीखने की ज़रूरत नहीं।
  • संवाद में दो तरह की स्वतन्त्रता सम्भव है। मेरे ख़्याल से यही दो सर्वोत्तम रूप हैं। एक तो यह कि किसी महत्त्वपूर्ण वस्तु से सीधे-सीधे साक्षात्कार करें। दूसरा रास्ता वह है जो रोज़मर्रा के जीवन में होता है। जैसे हम एक-दूसरे से मिलते हुए, एक-दूसरे के काम के बारे में बात करते हुए या मदद करते हुए (विनम्र शब्दों में) या प्रशंसा करते हुए आपस में संवाद करते हैं। पर किसी भी मामले में परिणाम का सामने आना ज़रूरी है। अगर कोई अपने सफलता के उपकरणों के बारे में बात नहीं करता तो इसका अर्थ यह नहीं कि हमारे आपसी विश्वास में कोई कमी है या उसकी बताने की इच्छा नहीं है या वह इस प्रसंग में पड़ना ही नहीं चाहता
  • आँखों का काम अब पूरा हुआ। अब जाओ और हृदय का काम करो, उन छवियों पर जो तुम्हारे भीतर हैं।
  • जीवन को घटित होने दो। मेरा विश्वास करो, वह सदैव सही दिशा में चल रहा होता है।
  • शायद हमारे जीवन के सभी ड्रैगन, राजकुमारियाँ हैं जो इंतज़ार कर रही हैं कि सिर्फ़ एक बार हम सुंदरता और साहस से अपने क़दम आगे बढ़ाएँ। शायद वह सब कुछ जो हमें भीतर ही भीतर डराता है अपने गहनतम सार में कुछ असहाय-सा है जो हमारा स्नेह चाहता है।
  • जीवन का उद्देश्य बड़ी से बड़ी चीज़ों से पराजित होना है।
  • मैं उनके साथ होना चाहता हूँ जो रहस्यमयी चीज़ों के बारे में जानते हैं या फिर बिल्कुल अकेला।
  • किसी मनुष्य का परिचय उससे हुआ तुम्हारा आख़िरी संवाद नहीं, बल्कि वह है जो वह तुम्हारे साथ समूचे रिश्ते में रहा।
  • एक जादू है, जो हर बार उन्हें महसूस होता है जो वास्तव में प्रेम करते हैं। जितना आधिक वे देते हैं उससे कहीं आधिक वे अर्जित करते हैं।
  • अपने अहँकार को भेद्य बनाओ। इच्छा, बहुत महत्त्व की वस्तु नहीं, शिकायतें किसी काम की नहीं, शोहरत कुछ भी नहीं है। निर्मलता, धैर्य, ग्रहणशीलता और एकाँत ही सब कुछ है।
  • अपने एकाँत से एक अपनापन स्थापित करो, और उससे प्रेम करो। सहना सीखो उस पीड़ा को जो उस एकाँत से उपजती है, उसके साथ गुनगुनाओ। क्योंकी जो तुम्हारे समीप हैं, वे तुमसे बहुत दूर हैं।
  • यदि हम स्वयं को पृथ्वी की प्रज्ञा को समर्पित कर दें, तब हम एक वृक्ष की तरह खड़े हो सकते हैं, अपनी जड़ों से मज़बूत।
  • सभी चीज़ें बहना चाहती हैं।
  • भविष्य हमारे अंतस में प्रवेश करता है, अपने आप को हमारे भीतर बदलने के लिए, अपने होने के बहुत पहले।
  • जो कुछ भी कठोर है, भयकारी है, उसे हमारे स्नेह की आवश्यकता है।
  • कितना सुंदर है उन लोगों के बीच होना जो पढ़ रहे हैं।
  • क्रोध में यदि तुम क्षण भर के लिए भी धैर्य रख सको तो तुम एक युग भर के दुःख से बच जाओगे।


Quote of Ranier Maria Rilke


  • Ek manushya ka doosre manushya ke prati prem mehsoos karna, shayad yeh sabse badi zimmedaari hai, jo manushyon ko dee gayi hai. Yeh aakhiri sankat hai. Yeh wah kaarya hai jiske liye baaki sabhi kaarya maatr ek tayyari hain.
  • Main ise do sambandhon ke beech ki sabse badi zimmedaari maanta hoon. Pratyek ek-doosre ke ekaant ka prahari ho.
  • Apne bhitar sab kuch ghaṭit hone do. Sundarta aur bhay. Koi bhi sanvedna antim nahin hai.
  • Dekhna aur kaam karna—yahan kitna alag hai. Aap chaaron taraf nazar daudaaiye aur baad mein us par sochiye, yahan sab kuch takreeban ek hi jaisa hai.
  • Mujhe lagta hai sharat ke siva aisa koi samay nahin jab hamari saans mein mitti ki bas ek gandh mehsoos hoti hai—pakki hui mitti ki. Yeh gandh samudra ki gandh se kamtar nahin hai. Samudra ki lehre jab door rehti hain, tab uski gandh mein ek kadwapan rehta hai, lekin jab vah ek swar ke saath prithvi tat ko chhuti hai to usmein meetapan aa jaata hai. Yeh apne bhitar ek gehraayi ko sametee hoti hai.
  • Akhirkaar khatre uthana aur anubhav ke us chhor tak pahuchna se hi kalaakritiyon ka nirman sambhav ho paata hai, jisse aage koi aur nahin ja sakta. Is yatra mein hum jyon-jyon aage badhte jaate hain hamara anubhav vyaktigat, vyaktik aur vilakshan hota jaata hai aur isse jo cheez saamne aati hai vah is vilakshanata ki lagbhag hoobhoo abhivyakti hoti hai.
  • Kala mein aap 'bahut accha' ke bhitar hi rehte hain. Aur jab tak aap iske bhitar rehte hain yeh badhta hi rehta hai aur aapko paar kar aage nikal jaata hai. Mujhe lagta hai ki sarvottam antardrishti aur soojh use hi haasil hoti hai jo apne kaam ke bhitar rehta hai aur vahaan tika rehta hai, lekin jo unse doori banaye rakhta hai vah un par apni pakad nahin rakh paata.
  • Kuch cheezein swabhaavik roop se itni aakarshak hoti hain ki unke aage kuch aur nahin tikta. Aisa maana jaata hai ki apne kaam ke swaroop ko lekar hamara spasht nazariya hona chahiye, us par majboot pakad ho, aur saikdon byore tayar karke use samajhna chahiye. Main mehsoos karta hoon aur mujhe pakka vishwas hai ki Van Gogh ko bhi kisi mod par aisa ahsaas zaroor hua hoga ki ab tak kuch nahin hua hai, sab kuch mujhe hi karna hai.
  • Us kaaran ko dhoondho jo tumhare bhitar likhne ki ichchha paida karta hai, jhaank kar dekho kya us kaaran ki jadhein tumhare hriday ki gehraiyon tak failee hain? Aur phir apne aap se svikaar karo ki yadi tumhe likhne se roka gaya to tum jee nahin paoge.
  • Kierkegaard ke anusar sabhi cheezon mein pakshiyon ki tarah paryapt dhairya aur udan ki ichchha rakhta hoon. Svechchha se aankh moond kar poore dhairya ke saath, pratirodh ke beech chamakne ka maqsad liye kiye gaye dainandin ke kaarya darasal aise vidhan hain, jo humein niyantrit karne ki Ishwar ki aakansha mein baadhak nahin hain. Raat dar raat hum jeevan ke adhyayon ko bina vyavadhan ke dhak sakte hain, bina unse koi vichar liye jo Ishwar ki sharan mein hote hain.
  • Nishchay hi, hamare paas ek uchchattam star paane ke liye apna sab kuch jhonke dene aur daav par laga dene ke siva aur koi vikalp nahin hai. Lekin jab tak wah cheez kalaakriti mein aa na jaaye, tab tak hum uske baare mein maun rehne ke liye baadhy hain.
  • Prem mein bas itni koshish karni hai—ek-doosre ko mukt karo. Ki saath aasanī se sambhav hota hai. Humein ise seekhne ki zaroorat nahin.
  • Samaad mein do tarah ki svatantrata sambhav hai. Mere khyaal se yeh do sarvottam roop hain. Ek to yeh ki kisi mahatvapoorn vastu se seedha-seedha saakshaatkaar karein. Doosra rasta wah hai jo rozmarra ke jeevan mein hota hai. Jaise hum ek-doosre se milte hue, ek-doosre ke kaam ke baare mein baat karte hue ya madad karte hue (vinamra shabdon mein) ya prashansa karte hue aapas mein samaad karte hain. Par kisi bhi maamle mein parinaam ka saamna aana zaroori hai. Agar koi apne safalta ke upkaranon ke baare mein baat nahin karta to iska arth yeh nahin ki hamare aapsi vishwas mein koi kami hai ya usse bataane ki ichchha nahin hai ya vah is prasang mein padna hi nahin chahta.
  • Aankhon ka kaam ab poora hua. Ab jao aur hriday ka kaam karo, un chhaviiyon par jo tumhare bhitar hain.
  • Jeevan ko ghaṭit hone do. Mera vishwas karo, vah sada sahi disha mein chal raha hota hai.
  • Shayad hamare jeevan ke sabhi dragon, rajkumariyan hain jo intezaar kar rahi hain ki sirf ek baar hum sundarta aur sahas se apne kadam aage badhaayein. Shayad vah sab kuch jo humein bhitar hi bhitar darata hai apne gehantam saar mein kuch asahayi-sa hai jo hamara sneha chahta hai.
  • Jeevan ka uddeshya badi se badi cheezon se parajeet hona hai.
  • Main unke saath hona chahta hoon jo rahasyamayi cheezon ke baare mein jaante hain ya phir bilkul akela.
  • Kisi manushya ka parichay usse hua tumhara aakhiri samaad nahin, balki vah hai jo vah tumhare saath samoohe rishte mein raha.
  • Ek jadoo hai, jo har baar unhe mehsoos hota hai jo vastav mein prem karte hain. Jitna adhik ve dete hain usse kahin adhik ve arjit karte hain.
  • Apne ahankaar ko bhedya banao. Ichchha, bahut mahatv ki vastu nahin, shikayatein kisi kaam ki nahin, shohrat kuch bhi nahin hai. Nirmalta, dhairya, grahansheelta aur ekaant hi sab kuch hai.
  • Apne ekaant se ek apnapan sthapit karo, aur usse prem karo. Sahna seekho us peeda ko jo us ekaant se upajti hai, uske saath gungunao. Kyunki jo tumhare sameep hain, ve tumse bahut door hain.
  • Yadi hum swayam ko prithvi ki prajna ko samarpit kar den, tab hum ek vriksh ki tarah khade ho sakte hain, apni jaden se majboot.
  • Sabhi cheezein behna chahti hain.
  • Bhavishya hamare antas mein pravesh karta hai, apne aap ko hamare bhitar badalne ke liye, apne hone ke bahut pehle.
  • Jo kuch bhi kathor hai, bhaykari hai, use hamare sneha ki avashyakta hai.
  • Kitna sundar hai un logon ke beech hona jo padh rahe hain.
  • Krodh mein yadi tum kshan bhar ke liye bhi dhairya rakh sakoge to tum ek yug bhar ke dukh se bach jaoge.

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