अल्लामा इक़बाल ग़ज़ल /Allama Iqbal Ghazal हुआ न ज़ोर से उस के कोई गरेबाँ चाक अल्लामा इक़बाल ग़ज़ल /Allama Iqbal Ghazal हुआ न ज़ोर से उस के कोई गरेबाँ चाक अगरचे मग़रबियों का जुनूँ भी था चालाक मय-ए-यक़ीं से ज़मीर-ए-हयात है पुर-सोज़ नसीब-ए-मदरसा या रब ये आब-ए-आतिश-नाक उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी के मुंतज़िर हैं तमाम ये कहकशाँ ये सितारे ये नील-गूँ अफ़्लाक यही ज़माना-ए-हाज़िर की काएनात है क्या दिमाग़ रौशन ओ दिल तीरा ओ निगह बेबाक तू बे-बसर हो तो ये माना-ए-निगाह भी है वगरना आग है मोमिन जहाँ ख़स ओ ख़ाशाक ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राह किसे ख़बर कि जुनूँ भी है साहिब-ए-इदराक जहाँ तमाम है मीरास मर्द-ए-मोमिन की मिरे कलाम पे हुज्जत है नुक्ता-ए-लौलाक हादसा वो जो अभी पर्दा-ए-अफ़्लाक में है अल्लामा इक़बाल ग़ज़ल /Allama Iqbal Ghazal हादसा वो जो अभी पर्दा-ए-अफ़्लाक में है अक्स उस का मिरे आईना-ए-इदराक में है न सितारे में है ने गर्दिश-ए-अफ़्लाक में है तेरी तक़दीर मिरे नाला-ए-बेबाक में है ...
ये नैना, ये काजल, ये ज़ुल्फ़ें, ये आँचल खूबसुरत सी हो तुम ग़ज़ल कभी दिल हो कभी धड़कन कभी शोला, कभी शबनम तुम ही तो तुम मेरी हमदम ज़िन्दगी तुम मेरी, मेरी तुम ज़िन्दगी मेरी आँखों से देखो, मेरी नज़रों से जानो तुम माला हम मोती, हम दीपक तुम ज्योती सपनोंका पनघट हो, आशा का झुरमट हो तुम नदिया हम धारा, तुम चन्दा हम तारा मेरी साँसों से पूछो, मेरी आहों को समझो तुम पूजा हम पुजारी, तुम क़िस्मत हम जुआरी #VishalAnand Ye Naina Ye Kajal Lyrics Ye naina, ye kaajal, ye julfen, ye anchal Khubasurat si ho tum gjl Kabhi dil ho kabhi dhadkan Kabhi shola, kabhi shabanam Tum hi to tum meri hamadam Jindagi tum meri, meri tum jindagi Meri ankhon se dekho, meri najron se jaano Tum maala ham moti, ham dipak tum jyoti Sapanonka panaghat ho, asha ka jhuramat ho Tum nadiya ham dhaara, tum chanda ham taara Meri saanson se puchho, meri ahon ko samajho Tum puja ham pujaari, tum kismat ham juari Additional Information गीतकार : अमित खन्ना, गायक : किशोर कुमार, संगीतकार : बप्पी लाहिरी, चित्रपट : दिल से मिले दिल (१९७८) / Ly...
अहमद फ़राज़ ग़ज़ल / Ahmed Faraz Ghazal अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम अहमद फ़राज़ ग़ज़ल / Ahmed Faraz Ghazal अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम सहरा-ए-ज़िंदगी में कोई दूसरा न था सुनते रहे हैं आप ही अपनी सदाएँ हम इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम तू इतनी दिल-ज़दा तो न थी ऐ शब-ए-फ़िराक़ आ तेरे रास्ते में सितारे लुटाएँ हम वो लोग अब कहाँ हैं जो कहते थे कल 'फ़राज़' है है ख़ुदा-न-कर्दा तुझे भी रुलाएँ हम अब क्या सोचें क्या हालात थे किस कारन ये ज़हर पिया है अहमद फ़राज़ ग़ज़ल / Ahmed Faraz Ghazal अब क्या सोचें क्या हालात थे किस कारण ये ज़हर पिया है हम ने उस के शहर को छोड़ा और आँखों को मूँद लिया है अपना ये शेवा तो नहीं था अपने ग़म औरों को सौंपें ख़ुद तो जागते या सोते हैं उस को क्यूँ बे-ख़्वाब किया है ख़िल्क़त के आवाज़े भी थे बंद उस के दरवाज़े भी थे फिर भी उस कूचे से गुज़रे फिर भी उस का नाम लिया है हिज्र की रुत जाँ-लेवा थी पर ग़लत सभी अंदाज़े निकले ...
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