अजब रंग आँखों में आने लगे / 'आशुफ़्ता' चंगेज़ी

अजब रंग आँखों में आने लगे
हमें रास्ते फिर बुलाने लगे

इक अफ़वाह गर्दिश में है इन दिनों
के दरिया किनारों को खाने लगे

ये क्या यक-ब-यक हो गया क़िस्सा-गो
हमें आप-बीती सुनाने लगे

शगुन देखें अब के निकलता है क्या
वो फिर ख़्वाब में बड़बड़ाने लगे

हर इक शख़्स रोने लगा फूट के
के 'अशुफ़्ता' जी भी ठिकाने लगे.

श्रेणी: ग़ज़ल

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