क्यों फिर रहे हो कैफ़ ये ख़तरे का घर लिए / 'कैफ़' भोपाली

क्यों फिर रहे हो कैफ़ ये ख़तरे का घर लिए
ये कांच का शरीर ये काग़ज़ का सर लिए

शोले निकल रहे हैं गुलाबों के जिस्म से
तितली न जा क़रीब ये रेशम के पर लिए

जाने बहार नाम है लेकिन ये काम है
कलियां तराश लीं तो कभी गुल क़तर लिए

रांझा बने हैं, कैस बने, कोहकन बने
हमने किसी के वास्ते सब रूप धर लिए

ना मेहरबाने शहर ने ठुकरा दिया मुझे
मैं फिर रहा हूं अपना मकां दर-ब-दर लिए

श्रेणी: ग़ज़ल

Comments

Popular posts from this blog

मंगलेश डबराल की लोकप्रिय कविताएं Popular Poems of Manglesh Dabral

Ye Naina Ye Kajal / ये नैना, ये काजल, ये ज़ुल्फ़ें, ये आँचल

Mira Bai Ke Pad Arth Vyakhya मीराबाई के पद अर्थ सहित