जहाँ तक गया कारवान-ए-ख़याल / अंजुम रूमानी

जहाँ तक गया कारवान-ए-ख़याल
न था कुछ ब-जुज़ हसरत-ए-पाएमाल

मुझे तेरा तुझ को है मेरा ख़याल
मगर ज़िंदगी फिर भी हैं ख़स्ता-हाल

जहाँ तक है दैर ओ हरम का सवाल
रहें चुप तो मुश्किल कहें तो मुहाल

तेरी काएनात एक हैरत-कदा
शनासा मगर अजनबी ख़द-ओ-ख़ाल

मेरी काएनात एक ज़ख़्म-ए-कोहन
मुक़द्दर में जिस के नहीं इंदिमाल

नई ज़िंदगी के नए मकर ओ फ़न
नए आदमी की नई चाल-ढाल

हुए रूख़्सत अंजुम सहर के क़रीब
न देखा गया शायद अपना मआल

श्रेणी: ग़ज़ल

Comments

Popular posts from this blog

अल्लामा इक़बाल ग़ज़ल /Allama Iqbal Ghazal

Ye Naina Ye Kajal / ये नैना, ये काजल, ये ज़ुल्फ़ें, ये आँचल

अहमद फ़राज़ ग़ज़ल / Ahmed Faraz Ghazal