आईना साफ़ था धुँधला हुआ रहता था मैं / अंजुम सलीमी

आईना साफ़ था धुँधला हुआ रहता था मैं
अपनी सोहबत में भी घबराया हुआ रहता था मैं

अपना चेहरा मुझे कतबे की तरह लगता था
अपने ही जिस्म में दफ़नाया हुआ रहता था मैं

जिस मोहब्बत की ज़रूरत थी मेरे लोगों को
उस मोहब्बत से भी बाज़ आया हुआ रहता था मैं

तू नहीं आता था जिस रोज़ टहलने के लिए
शाख़ के हाथ पे कुम्लाया हुआ रहता था मैं

दूसरे लोग बताते थे के मैं कैसा हूँ
अपने बारे ही में बहकाया हुआ रहता था मैं

श्रेणी: ग़ज़ल

Comments

Popular posts from this blog

अल्लामा इक़बाल ग़ज़ल /Allama Iqbal Ghazal

Ye Naina Ye Kajal / ये नैना, ये काजल, ये ज़ुल्फ़ें, ये आँचल

अहमद फ़राज़ ग़ज़ल / Ahmed Faraz Ghazal