कोई हम-दर्द हम-दम न यगाना अपना / 'ममनून' निज़ामुद्दीन
कोई हम-दर्द हम-दम न यगाना अपना
रू-ब-रू किस के कहें हम ये फ़साना अपना
न किसू जैब के हैं फूल न दामन के हैं ख़ार
किस लिए था चमन-ए-दहर में आना अपना
फ़ाएदा क्या जो हुए शैख़-ए-हरम राहिब-ए-दैर
न हुआ दिल में किसी के जो ठिकाना अपना
है हज़ारों दिल-ए-पुर-ख़ूँ को यहाँ पेच पे पेच
देखियों तुर्रा-ए-मुश्कीं न मिलाना अपना
श्रेणी: ग़ज़ल
रू-ब-रू किस के कहें हम ये फ़साना अपना
न किसू जैब के हैं फूल न दामन के हैं ख़ार
किस लिए था चमन-ए-दहर में आना अपना
फ़ाएदा क्या जो हुए शैख़-ए-हरम राहिब-ए-दैर
न हुआ दिल में किसी के जो ठिकाना अपना
है हज़ारों दिल-ए-पुर-ख़ूँ को यहाँ पेच पे पेच
देखियों तुर्रा-ए-मुश्कीं न मिलाना अपना
श्रेणी: ग़ज़ल
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