कभी याद आओ तो इस तरह / मोहसिन नक़वी







कभी याद आओ तो इस तरह
कि लहू की सारी तमाज़तें
तुम्हे धूप धूप समेट लें
तुम्हे रंग रंग निखार दें
तुम्हे हर्फ़ हर्फ में सोच लें
तुम्हे देखने का जो शौक हो
तू दयार -ए -हिज्र की तीरगी
कोह मिचगां से नोच लें!
कभी याद आओ तो इस तरह
कि दिल -ओ -नज़र में उतर सको
कभी हद से हब्स -ए -जुनू बढ़े
तो हवास बन के बिखर सको
कभी खुल सको शब -ए -वस्ल में
कभी खून -ए -दिल में सँवर सको
सर -ए -रहगुज़र जो मिलो कभी
न ठहर सको न गुज़र सको!
मेरा दर्द फिर से ग़ज़ल बुने
कभी गुनगुनाओ तो इस तरह
मेरे जख्म फिर से गुलाब हों
कभी मुस्कुराओ तो इस तरह
मेरी धड़कनें भी लरज़ उठें
कभी चोट खाओ तो इस तरह
जो नहीं तू फिर बड़े शौक से
सभी राब्ते सभी जाब्ते
कभी धूप छांव में तोड़ दो
न शिकस्त -ए -दिल का सितम सहो
न सुनो किसी का अज़ाब -ए -जाँ
न किसी से अपनी ख़लिश कहो
यूंही खुश फिरो यूंही खुश रहो'
न ऊजड़ सकें न सँवर सकें
कभी दिल दुखाओ तो इस तरह
न सिमट सकें न बिखर सकें
कभी भूल जाओ तो इस तरह
किसी तौर जाँ से गुज़र सकें
कभी याद आओ तो इस तरह





श्रेणी: नज़्म






Comments

Popular posts from this blog

अल्लामा इक़बाल ग़ज़ल /Allama Iqbal Ghazal

Ye Naina Ye Kajal / ये नैना, ये काजल, ये ज़ुल्फ़ें, ये आँचल

अहमद फ़राज़ ग़ज़ल / Ahmed Faraz Ghazal