जब भी उससे हाल-ए-दिल कह आये हैं / 'महताब' हैदर नक़वी

जब भी उससे हाल-ए-दिल कह आये हैं
वापस आकर हम कितना पछताये हैं

तेरा चेहरा बिलकुल याद नहीं आता
बीच में जाने कैसे कैसे साये हैं

तू अपनी राहों की मसावत कम कर दे
तेरी आहट की हम आस लगाये हैं

थककर वापस आने की जब बात चली
सबसे पहले हम घर वापस आये हैं

कितनी रातें जागती आँखों से काटीं
राज़ मगर ख़्वाबों के समझ न पाये हैं

श्रेणी: ग़ज़ल

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