रखे है रंग कुछ साक़ी शराब-ए-नाब आतिश का / 'ममनून' निज़ामुद्दीन

रखे है रंग कुछ साक़ी शराब-ए-नाब आतिश का
मुक़त्तर क्या किया ले कर गुल-ए-शादाब आतिश का

मेरे ये गर्म आँसू पोंछ मत दस्त-ए-निगारीं से
कि उन आँखों से रहता है रवाँ सैलाब आतिश का

तह-ए-मिज़गाँ निहाँ रखते हैं हम लख़्त-ए-दिल-ए-सोज़ाँ
यहाँ ख़ाशाक़ में रखा है अख़गर दाब आतिश का

निगाह-ए-गर्म से उस की दिल-ए-बे-ताब रू-कश है
हरीफ़ आख़िर हुआ ये पारा-ए-सीमाब आतिश का

जो सैल-ए-अश्क ओ आह-ए-गर्म को टुक दीजिए रूख़्सत
निशाँ दरिया का गुम हो नाम नायाब आतिश का

शकेब ओ ताब ओ होश ओ सब्र सोज़-ए-ग़म से सब सुलगा
हुआ तोता ग़रज अपना तमाम अस्बाब आतिश का

अरक़ उस शोला-गूँ आरिज़ पे क्या सना-ए-इलाही है
नहीं देखा है हम ने रब्त बाहम आम आतिश का

श्रेणी: ग़ज़ल

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