विविध : हरियाणवी लोकगीत Vividh : Haryanvi Lok Geet
अच्छे लीला गोद मेरी
अच्छे लीला गोद मेरी सोक लिलिहारी
नाक पै बुलाक गोद रथ कौ सो पैय्या
गालन को झुकादे दोनों लंग को पपैय्या
होठों में बना दे एक कोयल कारी
अच्छे लीला गोद मेरी...
अरे निऊँ रौवै बूढ़ बैल
अरे निऊँ रौवे बूढ़ बैल,
म्हने मत बेचै रे, पापी!
तेरे कुल कोल्हू में चाल्या
नाज कमा कै तेरे घरां घाल्या
इब तन्ने कर ली है बज्जर की छाती ।
तेरा बज्जड़ खेत मन्ने तोड्या,
गडीते न मुँह मोड्या,
इब मेरी बेचै से माटी ।
मेरी रै क्यों बेचै से माटी?
अरे निऊँ रौवै बूढ़ बैल ।
अरै मैं बुरी कंगाली धन बिन
अरै मैं बुरी कंगाली धन बिन कीसी रै मरोड़ ?
भोगा, बुरी रै कंगाली, धन बिन कीसी रै मरोड़!
धनवन्त घरां आणके कह जा
निरधन ऊँची-नीची सब सह जा
सर पर बंधा-बंधाया रह जा
माथे पर का रै मोड़ ।
अरै मैं बुरी कंगाली धन बिन कीसी रै मरोड़!
निरधन सारी उमर दुख पावे
भूखा नंग रहके हल बाहवे
भोगा, बिना घी के चूरमा
तेरी रहला कमर तै रै तोड़
अरै मैं बुरी कंगाली धन बिन कीसी रै मरोड़ !
अली - गली अरी नणदी मनरा फिरै
अली - गली अरी नणदी मनरा फिरै
अरी नणदी मनरे नै ल्याओ नै बुलाय
चूड़ा तै मेरी जान,
चूड़ा तै हाथी दाँत का
हरी तै चूड़ी री नणदी ना पहरूँ
हरे मेरे राजा जी के खेत
बलम जी के खेत
चूड़ा तै हाथी दाँत का
काणी तै चूड़ी री नणदी ना पहरूँ
काणे मेरे राजा जी के केश
बलम जी के केश
चूड़ा तै हाथी दाँत का
धौणी तै चूड़ी री नणदी ना पहरूँ
धौणे मेरे राजा जी के दाँत
बलम जी के दाँत
चूड़ा तै हाथी दाँत का
एक जाट और एक जाटणी बालक बनायो
एक जाट और एक जाटणी बालक बनायो
काई खोट बाबा ने बालक पे धप्प जमायो
बालक रोमत रोमत अपनी महतारी पै आयो
क्यों बालक मार्यो बालम बड़े दुखन्तु जायो
या में मेरो साझा ना है सुन आच्छा मारूंगा
अबे तबे बोलेगी दारी तोहे भी झारूंगा
तीन महीने लौं मोहे सूखी लियो हवकाई
उठे कमर में दरद देख मेरे पीछे बैठी दाई
मेरे बड़े परेखे आवैं मारैं माल लुगाई
कुनबा तो खाबे चुपरी चीकनी तने गोला खांड उड़ाई
इन मालन में आग लगादे तूं दो इक बालक करले
खबरदार जो तने बालक के हाथ लगायो
हरसुख कहै या में मेरो साझो घणो बतायो
एक दिन करो सिंगार नार ने
एक दिन करो सिंगार नार ने तीहर पहर ली,
सीसो लियो हाथ रेख दो नैनन बीच गही।
लगा लियो अखियन में कजरा,
या ढब ले रहो झिमार उठै ज्यों सावन को बदरा।
नार इक सुआ सारी है,
इत उत के चोटी परी लगे जैसे नागिन कारी है।
आए रहे अंगिया पै जलसा,
पीछे के चोटी बन्धी धरे दो सोरन के कलसा।
नार में सोने की हंसली,
हार हमेर गुलीबन्द एक माला मोतिन की असली।
करै इस पायल झनकारो,
झांझन चूरी सोठ करूला गोटे पै नारो
रचा लई हाथन में मेंहदी
मांगन में भरयो सिन्दूर धरी दो माथे पे बैंदी।
पहर लई अंगलिन में गूंठी,
जब लगी बिरह की भूख नार की फिर देही टूटी।
गुदा लिया टूण्डी पे मोरा,
हंसन की लगतार बीच में सारस को जोरा।
एक दिन होगा ढेर मैदान में
एक दिन होगा ढेर मैदान में, किस गफलत में फिर रहा सै।
सब बातां नै भूल जायेगा, जब आवैगा बखत अखोरी।
माता बहनां धौरा धरजां, उल्टी हटजा अरज सरीरी।
यम के दूत पकड़ कै लेजां, हाथां में तेरे घाल जंजीरी।
एैल फेल नै भूल जायेगा, रेते में रल जां ठाठ।
सीस पकड़ कै रोवैगा, रै कुनबा हाजा बारह बाट।
नैपे सिर का कफन मिले ना, नीचे तो जा काठ की खाट।
भजा सै भजन जबान में, किस ढंग का छल भर रहा सै।
एक दिन होगा ढेर...
उस मालिक की भक्ति करले न, घर ईसवर के होगा जाणा।
के तो राजी खुसी डिगर जा, ना तै होगा धिंगताणा।
मोहर छाप तेरी खाली रहजा, छट लिया तेरा अन्न जल दाणा।
भक्ति करले उस मालिक की, दीये छोड़ कपट का जाल।
धरमराज की पूंजी बरतै, मूरख कोन्या करता ख्याल।
एक दिन खाली होवै कोथली, लिकड़ जां तेरे सारे माल।
एक दिन जलना पड़ै समसान में, किस मोह ममता में घिर रहा सै।
एक दिन होगा ढेर...
ए बहू आई असल गंवार
ए बहू आई असल गंवार या तो सासू की गैल लड़ै सै
सासू कहण लागी बहू उठ कै तैं पीस ले
चूल्हा कासण और बुहारी उठ कै नै देले नै
रोटी पोणी पाणी भरणा पड़ी पां पसार कै
काया मेरी बा ने घेरी सांस ल्यूं मूं पाड़ कै
बहू झुंझलाई बूढ़ी मारी है पछाड़ कै
भाजो रै नगरी के लोगो बूढी बोली ललकार कै
बुढिआ पड़ी ए पड़ी ससडै सै बहू सास की तरफ सरके सै
ऐ बहू आई असल गंवार...
पड़ी थी पुकार बूढ़ा आया लाठी उठाय कै
ओछे रे कुटम की ओछी बड़गी घर में आय कै
जाणू था मैं सन्तो तन्नै ल्याया था घर ब्याह कै
बहू झुंझलाई मूसल ल्याई सै उठाय कै
मूसल उठाया बुढै के मार्या हे उठाय कै
आडी खड़ी खाट बूढ़ा कूद गया सुसाय कै
सिर फूट्या गोडै फूटे पड्या धरण में आय कै
ऐ बहू आई असल गंवार...
बाहर तै जद आया भौंदू रोण लागी कलहारी नार
नर के मैं नाए ब्याही जीओ क्यूं मरे भरतार
बुढिआ नै गाली दीनी बूढ़ा गया लाठी मार
धमकी दे चाल्ली मन्नै न्यूं हे पडूंगी कूएं में जाय कै
हो मैं बोली ना सरम की मारी हो पति कुलां की रख दई थारी
ऐ बहू आई असल गंवार...
नार का सिखाया भौंदू जा पकड़ी बूढी की नाड़
पोली मैं तो बूढ़ी पीटी मुक्के मारे दोए चार
कित ग्या तलाकी बूढा इबे द्यून उन्ने सुधार
गद्धमगध बूढी पीटी जा पकड़ी बूढ़े की नाड़
के मैं जींदा नहीं जाणा इबे देऊं तन्नै मार
पूत तो सपूत दीजो हरदम रह सेवा में तैयार
इसे तै पूत तै न दूरे राखो करतार
ऐ बहू आई असल गंवार...
ओ नये नाथ सुण मेरी बात
ओ नये नाथ सुण मेरी बात,
या चन्द्रकिरण जोगी तनै तन-मन-धन तै चाव्है सै!
नीचे नै कंमन्द लटकार्ही चढ्ज्या क्यूँ वार लगावै सै !!
(मेरे कैसी नारी चहिये तेरे कैसे नर नै,
बात सुण ध्यान मैं धर कै ) - २
दया करकै नाचिये मोर, मोरणी दो आंसू चाव्है सै !
नीचे नै कंमन्द लटकार्ही चढ्ज्या क्यूँ वार लगावै सै !!
और जाल सब भिणभिणी तूं क्यों हे हरियाली
और जाल सब भिणभिणी तूं क्यों हे हरियाली
के तूं माली सींचिया के तेरी जड़ पैंताल
न मैं माली सींचिया न मेरी जड़ पैंताल
वारी मेरा जाहर मिल गइयां
मेरे तले जाहर सो रहा सूत्या है वो चादर ताण
वारी मेरा जाहर मिल गइयां
मूंधे हुए बिलौवणे रीती है ये जा चकिहार
वारी मेरा जाहर मिल गइयां
ठाणां रांभै बाछडू डहरां री वे लागड़ गाय
वारी मेरा जाहर मिल गइयां
के सोवै मेरे लाड़ले? डहरां रे वे तेरी लागड़ गाय
वारी मेरा जाहर मिल गइयां
जाहर उठा भड़क कै टूटे री पिलंगा के साल
वारी मेरा जाहर मिल गइयां
पांचों ल्यावो कापड़े तीनों ल्यावो हथियार
वारी मेरा जाहर मिल गइयां
सीम सिमे पर नावड़या ल्याया री वो गऊ छुटाय
वारी मेरा जाहर मिल गइयां
अर्जुन मार्या बड़तले सर्जुन री वो सरवल पाल
वारी मेरा जाहर मिल गइयां
खाई के ओल्हे मौसी खड़ी कहदे रे बीरा मन की बात
वारी मेरा जाहर मिल गइयां
उठ उठ री मां हाथ धुवा मारे री मौसी के लाल
वारी मेरा जाहर मिल गइयां
बुरी करी रे मेरे लाडले मारे रे मौसी के लाल
वारी मेरा जाहर मिल गइयां
मौसी करदी ऊतणी भावज रे तनें करदी रांड
वारी मेरा जाहर मिल गइयां
कदिया ना गये राजा नौकरी
कदिया ना गये राजा नौकरी कदिया ना कटाया अपना नाम
रसीले बन में एकले।
कदिया ना भेजी राजा बाप के कदिया ना आये तांगा जोर
रसीले बन में एकले।
कदिया ना बैठे राजा चौंतरे कदिया न परखी मेरी चाल
रसीले बन में एकले।
कदिया न बुनी राजा जेवड़ी कदिया ना बुरी मेरी खाट
रसीले बन में एकले।
अब के तो जाऊं गोरी नौकरी अब के तो कटाऊं अपना नाम
रसीले बन में एकले।
अब के तो भेजूं गोरी बाप के अब के तो ल्याऊं तांगा जोर
रसीले बन में एकले।
अब के तो बैठून गोरी चौंतरे अब के तो परखूं तेरी चाल
रसीले बन में एकले।
अब के बाटूं गोरी जेवड़ी अब के तो बुनूं तेरी खाट
रसीले बन में एकले।
कृष्ण जन्म
पृथ्वी कहण लगी ब्रह्मा से, लाज बचा द्यों नें मेरी।
उग्रसैन का कंस अधर्मी जिन्हें ऋषियों पे विपता गेरी ॥
यज्ञ-हवन तप-दान रहे ना होगी सूं बलहीन प्रभु।
संध्या तर्पण अग्नि-होत्र कर दिए तेरा-तीन प्रभु।
वेद शास्त्र उपनिषदों में करता नुक्ताचीन प्रभु।
राम-नाम सबका छुडवाया कुकर्म में लौ-लीन प्रभु।
जरासंध शीशपाल अधर्मी करते हैं हेरा-फेरी ॥१॥
गंगा-यमुना त्रिवेणी का बंद करया अस्नान प्रभु।
जहाँ साधू संत महात्मा योगी करया करै गुजरान प्रभु।
मंदिर और शिवाले ढाह दिए घाल दिया घमशान प्रभु।
हाहाकार मची दुनिया म्हं जल्दी चल भगवान प्रभु।
मैं मृतलोक म्हं फिरूं भरमती आके शरण लई तेरी ॥२॥
न्याय-नीति और मनु-स्मृति भूल गया संसार प्रभु।
भूल गया मर्याद जमाना होरी मारो-मार प्रभु।
कोन्या ज्ञान रह्या दुनिया म्हं होग्ये अत्याचार प्रभु।
पत्थर बाँध कै ऋषि डुबो दिए जमुना जी की धार प्रभु।
संत भाजग्ये हिमालय पै मथुरा में डूबा ढेरी ॥३॥
सतयुग म्हं हिरणाकुश मरया नृसिंह रूप धरया प्रभु।
त्रेता म्हं तने रावण मारया बण कै राम फिरया प्रभु।
कृष्ण बण कै कंस मार दे होज्या बृज हरया प्रभु।
कहै ‘मांगेराम’ रम्या सब म्हं, हूँ सवेक शाम तेरा प्रभु।
बृज म्हं रास दिखा दे आकै गोपी जन्म घरां लेरी ॥४॥
मांगे राम
कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का
कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का -
आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥
कितै बणैं थी खीर, कितै हलवे की खुशबू ऊठ रही -
हाळी की बहू एक कूण मैं खड़ी बाजरा कूट रही ।
हाळी नै ली खाट बिछा, वा पैत्याँ कानी तैं टूट रही -
भर कै हुक्का बैठ गया वो, चिलम तळे तैं फूट रही ॥
चाकी धोरै जर लाग्या डंडूक पड़्या एक फाहळी का -
आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥
सारे पड़ौसी बाळकाँ खातिर खील-खेलणे ल्यावैं थे -
दो बाळक बैठे हाळी के उनकी ओड़ लखावैं थे ।
बची रात की जळी खीचड़ी घोळ सीत मैं खावैं थे -
मगन हुए दो कुत्ते बैठे साहमी कान हलावैं थे ॥
एक बखोरा तीन कटोरे, काम नहीं था थाळी का -
आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥
दोनूँ बाळक खील-खेलणाँ का करकै विश्वास गये -
माँ धोरै बिल पेश करया, वे ले-कै पूरी आस गये ।
माँ बोली बाप के जी नै रोवो, जिसके जाए नास गए -
फिर माता की बाणी सुण वे झट बाबू कै पास गए ।
तुरत ऊठ-कै बाहर लिकड़ ग्या पति गौहाने आळी का -
आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥
ऊठ उड़े तैं बणिये कै गया, बिन दामाँ सौदा ना थ्याया -
भूखी हालत देख जाट की, हुक्का तक बी ना प्याया !
देख चढी करड़ाई सिर पै, दुखिया का मन घबराया -
छोड गाम नै चल्या गया वो, फेर बाहवड़ कै ना आया ।
कहै नरसिंह थारा बाग उजड़-ग्या भेद चल्या ना माळी का ।
आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥
रचनाकार: कवि नरसिंह
काला बहल जुड़ाइयां मैं
काला बहल जुड़ाइयां मैं थलस तलै नै आइयां
क्यों कर जीऊं काले कै ब्याह दइयां
काला घर मैं बड़ियां ये कड़ी करंजै पड़ियां
क्यों कर जीऊं काले कै ब्याह दइयां
भूरा बहल जुड़ाइयां मैं झट दै बेहल मैं आइयां
क्यों कर जीऊं काले कै ब्याह दइयां
भूरा घर मैं बड़ियां सत्तर दीवे बलियां
काले के दो जाये जणों भूंड गिरड़ ते आये
क्यों कर जीऊं काले कै ब्याह दइयां
भूरे कै दो जाये जणो चांद सूरज दो आये
क्यों कर जीऊं काले कै ब्याह दइयां
कोई तौ दिन हाँड़ लै गलिएँ
कोई तौ दिन हाँड़ लै गलिएँ !
मालिक मेरे ने बाग लुआया,
खूब खिलीं कलिएँ !
कोई तौ दिन हाँड़ लै गलिएँ !
मौत-मलिन फिरै बाग मैं,
हात लई डलिए !
कोई तौ दिन हाँड़ लै गलिएँ !
कचे पाकाँ की सैर नै जानी,
तोड़ रई कलिएँ !
कोई तौ दिन हाँड़ लै गलिएँ
कोई बरसन लागी काली बादली!
कोई बरसन लागी काली बादली !
"डौलै तै डौलै, हालीड़ा, मैं फिरी
मन्ने किते न पाया थारा खेत ।"
बरसन लागी काली बादली !
"कोई चार बुलदांका, हालीड़ा, नीरना
दोए जणिएँ की छाक !"
बरसन लागी काली बादली !
"कितरज बोया, हालीड़ा, बाजरा ?
कोई कितरज बोई जवार ?"
बरसन लागी काली बादली !
"थलियाँ तै बोया, गोरी धन, बाजरा,
कोई डेराँ बोई जवार"
बरसन लागी काली बादली !
कोण ज खेलै मां गींड खुली
कोण ज खेलै मां गींड खुली कोण जै मारैगा टोर
मैं बणजारी ओ राम की
(यहां किसी का नाम लिया जा सकता है) खेलै मां गींड खुली
(किसी अन्य व्यक्ति का नाम लिया जा सकता है) मारैगा टोर
मैं बणजारी ओ राम की
गहनो दे घरवाई मरद ते कह लुगाई
गहनो दे घरवाई मरद ते कह लुगाई
इन लोटन में आग लगादे मेरा गुलीबन्द घरवादे
गहनो दे घरवाई मरद ते कह लुगाई
गुलीबन्द है खाजा चपरा, आच्छे कीमती लादूं कपरा
सारी दे मंगवाई मरद ते कहे लुगाई
गंगा जी तेरे खेत मैं
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार
कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
शिवजी के करमंडल कै, विष्णु जी का लाग्या पैर।
पवन पवित्र अमृत बणकै, पर्बत पै गई थी ठहर।।
भागीरथ नै तप कर राख्या, खोद कै ले आया नहर।।।
साठ हज़ार सगर के बेटे, जो मुक्ति का पागे धाम।
अयोध्या कै गोरै आकै, गंगा जी धराया नाम।।
ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनो, पूजा करते सुबह शाम ।।।
सब दुनिया तेरे हेत मैं, किसी हो रही जय जयकार ....
कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही...
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार
कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
अष्ट वसु तन्नै पैदा किये, ऋषियों का उतार्या शाप।
शांतनु कै ब्याही आई, वसुओं का बनाया बाप।।
शील गंग छोड कै स्वर्ग मैं चली गई आप।।।
तीन चरण तेरे गए मोक्ष मैं, एक चरण तू बणकै आई।
नौसै मील इस पृथ्वी पै, अमृत रूप बणकै छाई।।
यजुर-अथर्व-साम च्यारों वेदों नै बड़ाई गाई।।।
शिवजी चढ़े थे जनेत मैं, किसी बरसी थी मूसलधार ....
कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही...
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार
कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
गौमुख, बद्रीनारायण, लछमन झूला देखि लहर।
हरिद्वार और ऋषिकेश कनखल मैं अमृत की नहर।।
गढ़मुक्तेश्वर, अलाहबाद और गया जी पवित्र शहर।।।
कलकत्ते तै सीधी होली, हावड़ा दिखाई शान।
समुन्द्र मैं जाकै मिलगी, सागर का घटाया मान।।
सूर्य जी नै अमृत पीकै अम्बोजल का किया बखान।।।
इक दिन गई थी सनेत मैं, जित अर्जुन कृष्ण मुरार ....
कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही...
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार
कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
मौसिनाथ तेरे अन्दर जाणकै मिले थे आप।
मानसिंह भी तेरे अन्दर छाण कै मिले थे आप।।
लख्मीचंद भी तेरे अन्दर आण कै मिले थे आप।।।
जै मुक्ति की सीधी राही तेरे बीच न्हाणे आल़ा।
पाणछि मैं वास करता, एक मामूली सा गाणे आल़ा।।
एक दिन तेरे बीच गंगे मांगेराम आणे आल़ा।।।
राळज्यागा तेरे रेत मैं कित टोहवैगा संसार ....
कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही...
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार
कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
गाड़ी तलै मनै जीरा बोया
गाड़ी तलै मनै जीरा बोया, हां सहेली जीरा ए
जीरे के दो फंुगल लागी, हां सहेली फुंगल ए
फुंगल कै मनै गऊ चराई, हां सहेली गऊ ए
गऊ का मनै दूध काढ्या, हां सहेली दूध ए
दूध की मनै खीर बणाई, हां सहेली खीर ए
खीर तै मनै बीर जिमाए, हां सहेली बीर ए
बीरे नै मनै चूंदड़ उढ़ाया, हां सहेली चून्दड़ ए
चून्दड़ ओढ़ मैं पाणी चाली, हां सहेली पाणी ए
पानी ल्यांदे दो कांटे लागे, हां सहेली कांटे ए
काटा लाग मेरै आंसू आए, हां सहेली आंसू ए
आंसू लै मनै चून्दड़ तै पूंझे, हां सहेली चून्दड़ ए
चून्दड़ नपूते में धाबे पड़गे, हां सहेली धाबे ए
धाबे ले मनै धोबी कै गेर्या, हां सहेली धोबी ए
धोबी नपूते न धोला कर दिया, हां सहेली धोला ए
धोला ले मनै लीलगर के गेर्या, हां सहेली लीलगर ए
लीलगर नपूते ने लीला कर दिया, हां सहेली लीला ए
लीला लै मनै दरजी के गेर्या, हां सहेली दरजी ए
दरजी नपूते ने कोथला सीम दिया, हां सहेली कोथला ए
कोथले मैं मनै सास घाली, हां सहेली सास ए
सास घाल में बेचण चाली, हां सहेली बेचण ए
बेच बाच के टके ल्याई, हां सहेली टके ए
टके का मनै चूड़ा पहर्या, हां सहेली चूड़ा ए
चूड़ा मेरा चिमकै, सास मेरी बिलसे ए।
गोपीचन्द
कान पङा लिये जोग ले लिया, इब गैल गुरु की जाणा सै ।
अपणे हाथां जोग दिवाया इब के पछताणा सै ॥
धिंग्ताणे तै जोग दिवाया मेरे गळमैं घल्गि री माँ,
इब भजन करुँ और गुरु की सेवा याहे शिक्षा मिलगी री माँ ।
उल्टा घरनै चालूं कोन्या जै पेश मेरी कुछ चलगी री माँ,
इस विपदा नै ओटूंगा जै मेरे तन पै झिलगी री माँ॥
तन्नै कही थी उस तरियां तै इब मांग कै टुकङा खाणा सै ।
अपणे हाथां जोग दिवाया इब के पछताणा सै ॥
*****
बोल सुण्या जब साधू का, खाटका लग्या गात के म्हाँ ।
पाटमदे झट चाल पड़ी, उनै भोजन लिया हाथ के म्हाँ ॥
उठ्ण लागी ल्हौर बदन मैं, जब नैनो से नैन लड़ी ।
मेरे पिया बिन सोचे समझे, या गलती करदी बोहोत बड़ी ॥
हिया उझळ कै आवण लाग्या, आंख्यां तै गई लाग झड़ी ।
हाथ जोङ कै पाटमदे झट, शीश झुका कै हुई खड़ी ॥
कह "लख्मीचन्द" न्यूँ बोली, तू क्युं ना रह्या साथ के म्हाँ ॥
पाटमदे झट चाल पड़ी...........
******
तळै खड्या क्युं रुके मारै चढ्ज्या जीने पर कै ,
एक मुट्ठि मनै भिक्षा चहिए देज्या तळै उतर कै ।
सुपने आळी बात पिया मेरी बिल्कुल साची पाई,
बेटा कह कै भीख घालज्या जोग सफ़ल हो माई ।
बेटा क्युकर कहूँ तनै तू सगी नणंद का भाई,
उन नेगां नै भूल बिसरज्या दे छोड पहङी राही ॥
पिया सोने के मन्नै थाळ परोसे जीम लिये मन भर कै,
राख घोळकै पीज्यां साधू हर का नाम सुमर कै ॥
तळै खड्या क्युं रुके मारै.....
लख्मीचन्द
चन्दा तेरो चान्दणे कोयली बोले
चन्दा तेरो चान्दणे कोयली बोले
खेलण जोगी है रात राजा कोयली बोले
ननद भौजाई खेलण निकली खेल खाल के घर बावड़ी
घर तो बैठा लणिहार राजा कोयली बोले
‘कहां गई तेरी मां कहां गया तेरा बाप राजा कोयली बोले’
‘कोई पीहर गई मेरी मां दिल्ली गया मेरा बाप राजा कोयली बोले’
‘के तो ल्यावे तेरी मां के तो ल्यावे तेरो बाप राजा कोयली बोले’
‘चून्दड़ी तै ल्यावे मेरी मां कपड़ा तै ल्यावै मेरो बाप राजा कोयली बोले’
जरमन तेरा जाइयो राज
जरमन तेरा जाइयो राज,
आज ना तडकै !
तन्ने मारे बिराने लाल
जहाज भर-भर के !
मैं किस पर करूँ सिंगार
कालजा धड़के!
जरमन नैं गोला मारिया
जरमन नैं गोला मारिया,
ज फूट्या, था अम्बर मैं ।
गारद सें सिपाही भाजै
रोटी छोड़ गए लंगर मैं ।
अरे उन तिरिऊन का जीवै,
जिनके बालम छे नम्बर में ।
जाट का मैं लाडला
जाट का मैं लाडला तिरखा लगी सरीर
अगन लगी बुझती नईं, बिना पिए जल-नीर
बिना पिए जल-नीर,--रस्ते में कुयाँ चुनाया
किस पापी ने यै जुल्म कमाया, उस पै डोल ना पाया!
जेवर की झंकार नै डोब दिया
जेवर की झंकार नै डोब दिया हरियाणा
सगा सगी तैं कहण लाग्या मैं तेरी छोरी ब्याह कै ले ज्यांगा
वा बोलै तू मेरी छोरी ना ब्याह सकदा
तेरे पास टूम घणी घालण नै कोन्या
इतनी सुण कै सगा बोल्या इतना के मेरा घाट्टा सै
बीस तीन के गूदड़ गाभे तीस बीस की खाट सै
तीन सौ की झोटी घरां करै तो अरडाट सै
मैं तेरी छोरी ब्याह कै ले ज्यांगा
चाहै कितना कर लिये धिंकताणा
जेवर की झंकार ने डोब दिया हरियाणा
जोडूं हाथ बलम तैं तेरे आगे
जोडूं हाथ बलम तैं तेरे आगे अब तूं मुंह से कहदे
छठ देखण ने मैं जाऊं बलमा एक रुपया दे दे
कहा कहे तूं धरती फारै सुणिये मेरी प्यारी
छठ देखण ना जाया करती भले घरां की नारी
संग सहेली जाये चोक की मैं कैसे रुक जाऊं
वहां दो आने की पऊवा बिकती जाय जलेबी खाऊं
लड्डू पेड़ा और जलेबी सभी माल आजांगै
छठ पै ऐसे नंग आवैं चोंट चोंट खा जांगे
ऐसो क्या मेरो हाथ नहीं हैं जो मैं चुटवा लूंगी
काढ़ पना मोढे पर मारूं सौ सौ गारी दूंगी
मुंह से तो तूं समझा ली ईब लाठी धर लूंगा
हरसुख नाट गयो है मुंह ते जाण कभी ना दूंगा
देखा जावै तू और हरसुख कैसे लठ धरोगे
पीहर जाये रहूंगी जब मेरो काहे करोगे
देखा जाए तेरो पीहर कब लौ नार डटेगी
नई उमर बालक ना पैदा केसे उमर कटेगी
कहा करूं कित जाए छाती पै पहार धर्यो है
औरो जाय करूंगी क्या पानी सो देस भर्यो है
देखूं तोहे नार आबदार कैसे खसम करेगी
काहे रंडवा के घर पिटती रोज फिरेगी
झूठ तै मैं बोलूं कोन्या झूठ की म्हारै आण
झूठ तै मैं बोलूं कोन्या झूठ की म्हारै आण
पानीपत के टेसण ऊपर मींडक बांटै बाण
एक अचंभा मन्नै सुण्या यो कुत्ता कपडणे धोवै
ओबरै में म्हैस जुगालै ऊंट पिलंग पै सोवै
झूठ तै मैं बोलूं कोन्या...
कीड़ी मरी पहाड़ पै खींचण चले चमार
दो सै जोड़ी जूती बणगी सांटै कई हजार
झूठ तै मैं बोलूं कोन्या...
कुतिआ चाली बिजार में गलै बांध के ईंट
बिजार के बणिए न्यूं उठ बोलैं ताई लता लेगी क छींट
झूठ तै मैं बोलूं कोन्या...
टोकणी पीतल की कुआं का रे जल भर लाई
टोकणी पीतल की कुआं का रे जल भर लाई
छेल मनै तरवा दे रंडवे की नजर ने खाई
नार तोहे बरजै मत घालै सुरमा स्याही
बैंत तोहे मारूं दगड़े में हंसती आई
मेरो कोई दोष नहीं वहां ठाडी चार लुगाई
जेठ मेरो न्यूं बोल्यो रे क्यों मारै छेल कसाई
देवर मेरो न्यूं बोल्यो या कि निकलन दे गुमराही
ननद मेरी न्यूं बोली या बिगडद्ये घर की आई
देवरानी मेरी न्यूं बोली तेरे तड़के ल्याऊं सगाई
पड़ौसिन मेरी न्यूं बोली मैं खुद ल्या दूं मां जाई
जेठाणी मेरी न्यूं बोली मुट्ठी में धरी लुगाई
तिरिया एक चतर पर बहना
तिरिया एक चतर पर बहना। कजरे भरी राखती नैंना।
गोरी बाको बदन चाल बैरिन की मतवारी।
पतरी पतरी कमर थोंद ही गोला गुदकारी।
तेरा मारिया ऐसे रोऊँ
तेरा मारिया ऎसा रोऊँ
जिसा झरता मोर बणी का
तेरे पाइयाँ माँ पायल बाजै
जिसा बाजे बीज सणीं का
थोड़ा-सा नीर पिला दै
प्यासा मरता दूर घणीं का
थोड़ा-सा नीर पिला दै
थोड़ा-सा नीर पिला दै, बाकी घाल मेरे लोटे मैं
अरे तूँ भले घराँ की दीखै, तन्ने जन्म लिया टोटे मैं
तू मेरे साथ होले गैल, दामण मढ़वा दिऊँ घोटै मैं !
दोनू हाथ्थाँ के म्हाँ ले री लोटा पाणी का
दोनू हाथ्थाँ के म्हाँ लेरी लोटा पाणी का
सूरज को जल देते देख्या रूप सेठाणी का...
धन जोबन में सन्नाई
धन जोबन में सन्नाई जैसे पक रही मूंगफरी सी
अब बढ़ने पर रही है सटके रोजनरी सी
काजर मत सारै, चन्दा ग्रहण परैगौ
मुख पै पल्ला लार कोई नर लूम मरैगो
नथली के जुलमी तोता
नथली के जुलमी तोता हालै झूलै मत रे
ऐसी बेहोस करी रे रस टपकै लगी झड़ी रे
या है पीले अधर भरी रे रसता भूले मत रे
फल कच्चे पक्े होते वे झूठे करे नपूते
ढोला तूं छोड़ अछूते सबे गबूरे मत रे
नर नारी की हो गई इक दिन
नर नारी की हो गई इक दिन आपस में लड़ाई
मो ते झगड़ा करके पिया सुख नहीं सोवगे।
चाकी भी चलावै जेघर धर के पानी ढोवेगो
जा लखन ते न खालेगी सिकी ते सिकाई
नर नारी की...
चुपकी रह बेहुद्दी ज्यादा बात न बनावै
मो बिन जी के न गोदी में छोरा खिलावै
पीर में रह लेती क्यों करवाया ब्याह सगाई
नर नारी की...
जै कहीं हो तकरार ले तूं लाठी का सहारो
धोती कमीज बिन रह जायेंगो उधारो
चाकी में आटे की हो जाये लहमा में पिसाई
नर नारी की...
हाथिन में हथफूल तेरो सोभा है बदन की
फेर भी बुराईदारी करे मरदन की
बे अंजन की रेल ठाडी चले न चलाई
नर नारी की...
निऊँ कह रही धौली गाय
निऊँ कह रही धौली गाय, मेरी कोई सुनता नईं ।
मेरे कित गए सिरी भगवान, मैं दुख पाय रई ।
मेरा दूध पीवे संसार, घी से खायँ खिचड़ी,
मेरे पूत कमावें नाज मैंघे भा की रूई ।
मेरी दहीए सुखी संसार, जब भी मेरे गल पै छुरी!
पांच बरस की ब्याह के उठ गए
पांच बरस की ब्याह के उठ गए परदेस सुनो रै राजा भरथरी
बारह बरस में रै राजा बाहवड़े आए सैं बागां के बीच
सुनो रै राजा भरथरी
बागां के उठे रै जोगी चल पड़े आए हैं माता दरबार
सुनो रै राजा भरथरी
भिच्छा तै घालो री माता तावली जोगी खड़े तेरे बार
सुनो रै राजा भरथरी
भिच्छा तै घालूं रै जोगी तावली तेरी सूरत मेरा लाल
सुनो रै राजा भरथरी
भूली फिरै सै री माता बावली तूं सै जनम की बांझ
सुनो रै राजा भरथरी
माता ने छल कै जोगी चल पड़ा आया सै भाण के बार
सुनो रै राजा भरथरी
भिच्छा तै घालू रै जोगी तावली तेरी सूरत मेरा बीर
सुनो रै राजा भरथरी
भूली फिरै सै है भैणा बावली तूं सै जन्म की एक
सुनो रै राजा भरथरी
भैणां ने छल के जोगी चल पड़ा आया सै तिरिया के पास
सुनो रै राजा भरथरी
भिच्छा तै घालूं रै जोगी तावली तेरी सूरत मेरा नाथ
सुनो रै राजा भरथरी
भूली फिरै सै राणी बावली तूं सै फेरां की रांड
सुनो रै राजा भरथरी
गल मैं तै घालूं जोगी ओढण ईब चालूं तेरी साथ
सुनो रै राजा भरथरी
हाथ के तै बांधा रे जोगी कांगणा सिर कै तै बांधा मोड़
सुनो रै राजा भरथरी
रोवत बांध रे तिरिया कांगणा छीकत बांधा मोड़
सुनो रै राजा भरथरी
पिया, भरती मैं हो लै ने
पिया, भरती मैं हो लै ने,
पट जा छत्तरीपन का तोल !
जरमन मैं जाकर लड़िए,
अपने माँ-बाप का नाँ करिए ।
ओ तोपों के आगे उड़िए,
अपनी छाती मैं दे खोल ।
पिया, भरती मैं हो लै ने,
पट जा छत्तरीपन का तोल !
पीतल की बालटी आले
पीतल की बालटी आले ढोवै सै बालू रेत
‘रे बीरा बखतै दिल्ली जाइये लाइये गुलाबी छींट’
‘हे मैं सारे सहर में घूम्या न पाई गुलाबी छींट
मेरा बाबल बखते उठ्या ल्याया गुलाबी छींट
मेरी भावज रोवण लाग्यी ‘म्हारी घर का कर दिया नास’
‘कार्तिक की करी लामणी भादवे का खोदा न्यार
चलती ने ते मिले जवाब’
पीहर मेरो मालवो
पीहर मेरो मालवो
कचरी री जाणू आर्यो सब सूं बड़ो तरबूज
मेरो तो मन माने नाय मुलक तेरो गिदावड़ो
पीहर मेरो मालवो
हंसा आयो मेरे पावुनो हंसा सूं हंस बोलयो
कैसे करो आवणो
हंसा आयो हंस हंस सीढ़ी चढ़ गयो हंस कर पकड़ी मेरी बांह
लखेरी चूड़ो कांच को झड़ गयो तेरो के गयो गंवार
कचेहरा को घर गयो
बरस्या बरस्या रे झंडू मूसलधार
बरस्या बरस्या रे झंडू मूसलधार लाल पड़ौसिन का घर ढह पड़ा।
चाल्या चाल्या रे झंडू सिर धर खाट लाल पड़ौसिन के सिर गूदड़ा।
खोलो खोलो रै गौरी म्हारी बजर किवाड़ सांकल खोलो लोहसार की
म्हारी भीजे री गौरी पंचरंग पाग लाल पड़ौसिन के सिर चूंदड़ी
दे दो रे छोरे बुलदां का पाल लास लसौली झंडू पड़ रहे जी
बस देख ली आजादी हामनै म्हारे हिन्दुस्तान की
बस देख ली आजादी हामनै म्हारे हिन्दुस्तान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ।।
न्यूं कहो थे हाळियाँ नै सब आराम हो ज्यांगे -
खेतों में पानी के सब इंतजाम हो ज्यांगे ।
घणी कमाई होवैगी, थोड़े काम हो ज्यांगे -
जितनी चीज मोल की, सस्ते दाम हो ज्यांगे ।
आज हार हो-गी थारी कही उलट जुबान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥
जमींदार कै पैदा हो-ज्याँ, दुख विपदा में पड़-ज्याँ सैं -
उस्सै दिन तैं कई तरहाँ का रास्सा छिड़-ज्या सै ।
लगते ही साल पन्द्रहवाँ, हाळी बणना पड़-ज्या सै -
घी-दूध का सीच्या चेहरा कती काळा पड़-ज्या सै ।
तीस साल में बूढ़ी हो-ज्या आज उमर जवान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥
पौह-माह के महीने में जाडा फूक दे छाती -
पाणी देती हाणाँ माराँ चादर की गात्ती ।
चलैं जेठ में लू, गजब की लगती तात्ती -
हाळी तै हळ जोड़ै, सच्चा देश का साथी ।
फिर भी भूखा मरता, देखो रै माया भगवान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥
बेईमानी तै भाई आज धार ली म्हारे लीडर सारों नै -
रिश्वत ले कै जगहां बतावैं आपणे मिन्तर प्यारों नै ।
कर दिया देश का नाश अरै इन सारे गद्दारों नै -
आज कुछ अकल छोडी ना हाळी लोग बिचारों मैं ।
आज तो कुछ भी कद्र नहीं है एक मामूली इंसान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥
कवि नरसिंह
बहुत सताई ईखड़े रै तैने
बहुत सताई ईखड़े रै तैने बहुत सताई रे
बालक छाड़े रोमते रै, तैने बहुत सताई रे
डालड़ी मैं छाड्या पीसना
और छाड़ी सलागड़ गाय
नगोड़े ईखड़े, तैने बहुत सताई रे
कातनी मैं छाड्या कातना
और छाड़ेसें बाप और माय
नगोड़े ईखड़े तैने बहुत सताई रे
बहुत सताई ईखड़े रै, तैने बहुत सताई रे
बालक छाड़े रोमते रै, तैने बहुत सताई रे
बहू हे तेरा नाम चमेली
बहू हे तेरा नाम चमेली हे तू किस बालक की नार
बहू तूं सुथरी घणी से हे
सास मैं पाणी ने गई थी री उड़े आ रही एक बड़ी फौज
फौज में तै तेरा लाल खड़ा री
वो तै ले रहा अंगरेजी बैंत बात अंगरेजां
तैं कर रहा री
बहू हे तूं पक्के दिल की तनें देख्या मेरा लाल बहू हे
तूं घर क्यों न ले आई
सास वो तो जहाजां में बैठ लिया री उसने करड़े कर दिये पेच
जहाज मिसर में तार्या री
बाजरा कहे मैं बड़ा अलबेला
बाजरा कहे मैं बड़ा अलबेला
दो मूसल से लड़ूँ अकेला
जो तेरी नाजो खीचड़ा खाय
फूल-फाल कोठी हो जाए ।
बाबा मांडा बल ग्या मैं खा ल्यूंगा
बाबा मांडा बल ग्या मैं खा ल्यूंगा
बाबा यू बी बलग्या यू बी खा ल्यूंगा
बाबा सारे बलगे सारे मैं खा ल्यूंगा
बाबा कुणबा के तन्नै खागा
बांदी भेजूं हो साहब
बांदी भेजूं हो साहब! घर आ ताता सा पाणी सीला हो रहा
तुम न्हाओ रै गौरी म्हारी कंवर नहवा हमतै पड़ौसिन के घर न्हां ल्यां
बांदी भेजूं हो साहबा! घर आ तपी रसोई सीली हो रही
तुम जीमो रे गौरी म्हारी मात जिमा हमतै पड़ौसिन के घर जीम ख्यां
बिन मिलती जोट मिलाई
बिन मिलती जोट मिलाई
मरियो मात पिता अन्यायी बिन मिलती जोट मिलाई
देस बिराणा बालम याणा जानें ना सार हमारी
ऊंट के गल में बूट बांध दिया खारी खारी खारी
मरियेा मात पिता अन्यायी बिन मिलती जोट मिलाई
भरती हो लै रे थारे बाहर खड़े रंगरूट
भरती हो लै रे थारे बाहर खड़े रंगरूट !
याँ ऎसा रखते मध्यम बाना
मिलता पटिया पुराना ;
वाँ मिलते हैं फुलबूट ।
भरती हो लै रे थारे बाहर खड़े रंगरूट !
मन्नै तो पिया गंगा न्हुवादे
मन्नै तो पिया गंगा न्हुवादे जा रा सै संसार, हां ए जा रा सै संसार
तन्नै तो गोरी क्यूंकर न्हुवाद्यूं हात्तड़ पड़ री भैंस, हां ए हात्तड़ पड़ री भैंस
एक जनत पिया मैं बतलाद्यूं कर दे बेड़ा पार, हां ए कर दे बेड़ा पार
खूंटी पै मेरा दामण लटकै चंुदड़ी छापेदार, हां ए चूंदड़ी छापेदार
डब्बे में मेरी नाथ धरी सै पहर काढियो धार, हां ए पहर काढियो धार
बाहर तै एक मोडिया आया बेब्बे भिछा घाल, हां ए बेब्बे भिछा घाल
बेब्बे तो तेरी न्हाण गई सै जीज्जा काढै धार, हां ए जीज्जा काढे धार
खुंटा पड़ागी जेवड़ा तुड़ागी भाजगी सै भैंस, हां ए भाजगी सै भैंस
डंडा लैके पाछे होलिया लैण गया था भैंस, हां ए लैण गया था भैंस
गाती खुलगी पल्ला उडग्या मूंछ फड़ाके ले, हां ए मूंछ फड़ाके ले
गलियां में यो चरचा हो रही देखी मुछड़ नार, हां ए देखी मुछड़ नार
कोट्ठे चढकै रुक्कै मारे कोई मत भेज्जे न्हाण, हां ए कोए मत भेज्जो न्हाण
महलां तै बैठी तेरी माता झरुवै
महलां तै बैठी तेरी माता झरुवै, देख जेठानी का पूत
जाहर एक घरूं घर आ
सासरै तेरी बेबे रे झरुवे देख जेठानी का बीर
जाहर एक घरूं घर आ
पीहर में तेरी गोरी झरुवै देख भाणका नाथ
जाहर एक घरूं घर आ
सातैं ने आऊं ना मैं आठैं ने आऊं आऊं नवमी की रात
जाहर एक घरूं घर आ
धड़ धड़ धरती पाट के सुध लीलै गया समाय
जाहर एक घरूं घर आ
माता पिता ने धरम डिगा दिया
माता पिता ने धरम डिगा दिया महाराणा तैं डर कै
पति का परेम भुलावण लाग्यी क्यों धिंगताणा कर कै
अपनी मां के संग थी मीरा पूजा बीच निगाह थी
एक वर पूजण गया मंदिर में बारात सजी संग जा थी
मैं बोली कौण कित जा सै समझ लावण आली मां थी
न्यूं बोली बनड़ा बनड़ी ल्यावे जिसने पति की चाह थी
मैं बोली मेरा पति कौन झट हाथ लगाया गिरधर कै
पति का परेम...
नाम सुणा जब गिरधर जी का आनंद हो गई काया
बीरबानी ने पति बिना अच्छी लागै ना धन माया
उसका परेम ठीक हो जा सै जिस ने ज्यादा परेम बढ़ाया
खुद माता के कहने से मैंने गिरधर पति बनाया
करूं परीति सच्चे दिल तै परेम बीच में भर कै
पति का परेम...
मेरा कैहा मान पिया
मेरा कैहा मान पिया, बाड़ी मत बोइए;
सर पड़ेगी उघाई तेरे डंडा बाजै जाई,
पिया बाड़ी मत बोइए ।
मेरी सास ने सात जाये
मेरी सास ने सात जाये मेरे करम में बोन्ना री
मुलक हंसणा री जगत हंसणा
एक मेरे मन में ऐसी आवै पाथ धरूं पथरावै मैं
मुलक हंसणा री जगत हंसणा
नान्ही नान्ही बूंद पड़ैं थी चमक आया पथवारे में री
मुलक हंसणा री जगत हंसणा
एक मेरे मन में ऐसी आवै गेर आऊं कुरड़ी पै
मुलक हंसणा री जगत हंसणा
जोर सोर की आंधी आई चमक आया कुरड़ी मैं री
मुलक हंसणा री जगत हंसणा
एक मेरे मन में ऐसी आवै खारी मैं धर बेच आऊं री
मुलक हंसणा री जगत हंसणा
आगै मिल ग्या हरिअल पीपल उसके बांध आई री
मुलक हंसणा री जगत हंसणा
घर में आकै देखण लागी बोन्ने बिना उदासी री
मुलक हंसणा री जगत हंसणा
ऊपपर चढ़कै देखण लागी पीपल पाड़ैं आवै री
मुलक हंसणा री जगत हंसणा
बोन्ने का तो बोन्ना आया मुफ्ती इंधन ल्याया री
मुलक हंसणा री जगत हंसणा
मेरे आगे तेरी उठे कहा है
मेरे आगे तेरी उठे कहा है
एक दरख्त मैंने सुणो बिना जल आप ही बढ़ै
न ले हे सहारो किसी को धरण में आप गढ़ै
बता वह कौन लगावै है डेढ़ फल वाके आवै है
फूल तो दरख्त में ग्यारह बता दे मत हिम्मत हारे
तीन जुग में दरख्त हो है
वा दरख्त का नाम बता दे पूछ रहा तोहे
वा दरख्त का नाम बता दे जिसमें डेढ़ पता है
मेरे आंगण मां मेरी कड़वा-सा नीम
मेरे आंगण मां मेरी कड़वा सा नीम
ते ढलती ते फिरती छाया पड़ौसिन के घर ढल रही
घरड़ कटा दूं री मां मेरी कड़वा सा नीम
ढलती ते फिरती छाया पड़ौसिन के घर ढल रही
मत काटै मत काटै धी मेरी कड़वा सा नीम
ढलती तै फिरती छाया फेर बाह्वड़ै जी
मेरो गढ़ ददरेड़ी बड़ो सहर हिन्दुवाना
मेरो गढ़ ददरेड़ी बड़ो सहर हिन्दुवाना
अमर का पोता जेवर सिंह चौहाना
मरद निछत्तर छत्तरधारी राणा
बादसाही सूबा आम खास में थाना
मदद इलाही कला सवाई
नौबत में लागी धाई
जाहर पीर मरद अवतारी
जंग जीत पीरी पाई
कलजीवन सूं गोरख आया
चौदह सौ चेला संग लाया
आ बागां में डेरा लाया
बारह बरस का सूखा बाग हराया
फूलों का डौना माली भर के ल्याया
अम्मा बाछल जाए दिखाया
औधड़ चेला ने जाए अलख जगाया
राणी भिच्छा लाई गुर की रिच्छा
सेवा में बाछल आई
जाहर पीर मरद अवतारी...
वाछल माता जनमत की बांझ कहावै
पुत्र की खातिर सेवा हित कहलावे
मौला गोद भरेगा न्यूं सतगुर समझावै
सेवा सहणी गुरु की करणी
खुसी रही बाछल माई
जाहर पीर मरद अवतारी...
बारह बरस तक सेवा साधी गहरी
गोरख नाथ का परचा
हर दम हाल हजूरी
काछल का जौड़ा जिनें थी मजबूरी
बाछल का गूगा लिखी अरस ते पीरी
जौड़ा ने बाद मंडायो धुन्ध मचायो
दिल्ली में चुगली खाई
जाहर पीर मरद अवतारी...
चढ़ा बादसाह ले ली फौज अमोही
ददरेड़े छाया जित गूगासिंह की रोही
चढ़ा बाला ‘भाणजा’ लेली हाथ सरोही
चढ़े हिसाबा लसकर दाना
इन्दल कर दिया राही राही
जाहर पीर मरद अवतारी...
चढ़ा भज्जू भाई जिनने
लोथण कर दिया घारा
चढ़ा वीर ब्राह्मण नरसिंह मतवारा
वा फत्ते सिंह ने रण में खड्ग संभाला
वा गूगा जी के गले में भूमतिमाला
जिनकी बणी रहे चतुराई
जाहर पीर मरद अवतारी...
गूगा जी की मदद पीरपी राणी
समसेर उठाई जागीबामी भुजा भवानी
धड़सीस उड़ायो जिने वार करो हकानी
चौहान गोत्र की कर गयो अमर निसानी
गूगा ने सैर बैर जब लिया
लोथ जिनों की तड़ पाई
जाहर पीर मरद अवतारी...
बादसाह के जी पै बह गई कारी
लीला ने दोनों टाप धरी अम्बारी
गूगा ने आया लटका नीचे पटका
काण करूं तेरे तखत की
तो को कहा मारूं बादसाह भाई
जाहर पीर मरद अवतारी...
जंग जीत के सिर जोड़ां का ल्याया
इनको बिसवा दे दे ले मेरी बाछल माता
गूगा तनें बुरी करी ये
मेरी सगी बाहण का जाया
ददरेड़ा तै सुण कै करण पुरे में आया
अर्जुल्ला पाअी जब लीला सुधां समाया
भूडां बीच मैड़ी छाई
जाहर पीर मरद अवतारी...
मैं अंग्रेजी पढ़ गई बालम
मैं अंग्रेजी पढ़ गई बालम खाना नहीं बनाऊंगी
नहीं चूल्हे पर रखूं देगची आंच ना बारूंगी
पतली फुलकिया पोए न बालम तुझे न खिलाऊंगी
न चक्की पर रखूंगी पसीना कोर ना डालूंगी
गोरमैंट से बात करूंगी तनखाह पाऊंगी
तेरे सा मजूर पलंग बिछावै गद्दा लाऊंगी
मैं तो पाडूं थी हरी हरी दूब
मैं तो पाडूं थी हरी हरी दूब बटेऊ राही राही जा था
तूं तो बहुत सरूपी नार गैल मेरी चालै ना
मैं तो एक कहूंगी बात बटेऊ तूं सुणता जा
तेरै मारूंगी जूत हजार बटेऊं तूं गिणता जा
मेरे बाबुल के घर का बाग मेवा तो रुत की सै
मेरे भाई भतीजे साठ कुआं म्हारा घर का सै
मैं बैठ्या खेत के डोले पै
मैं बैठ्या खेत कै डोले पै
कित जासै सिखर दुपहरै नै ?
मेरी जान कालजा खटकै
मत जाइए जी, जी भटकै
लिए देख चार घड़ी डटके
खसबू आरई फूल झारे मैं ।
मैं हूर परी बाँगर की
मैं हूर परी बाँगर की, मन्ने फली खा लई सांगर की!
मेरी के बूझे भरतार
म्हने छोड़ न जइए, अपना कपटी दिल समझइए
ओ भर बुरा बनियाँ से प्यार
मोटी सी साड़ी ल्या दै हो
मोटी सी साड़ी ल्या दै हो
जिसकी चमक निराली...
जलियाँवाला बाग का जलसा
डायर फायर करता हो
भारत का बदला लेने को
लंदन में शेर विचरता हो
डायर मारया, खुद मरया
गया ना वार कती खाली
मोटी सी साड़ी ल्या दै हो
जिसकी चमक निराली....
मोरे क्यों गेरेस भूल
मोरे क्यों गेरेस भूल,
रूप खिल दिया सरसों का फूल
क्यों बोले से बात दरद की ।
मेरे चुभ से ऎणी रे करद की,
मालुम पट जा वीर मरद की,
पा पीटें हवालात में ।
रंडुवा तो रोवै आधी रात
रंडुवा तो रोवै आधी रात सपने में देखी कामनी
कोई ना पीसे उसका पीसना कोई ना पूछै उसकी बात
हिलक हिलक रंडुवा रो रहा भाभी ने पूछी बात
सपने में देखी कामनी
कोई न रोटी बणा देवे उसे कोई न पूछे उसकी बात
सपने में देखी कामनी
रूप तेरा चन्दा-सा खिल रिया
रूप तेरा चन्दा-सा खिल रिया,
बे ने घढ़ी बैठ के ठाली
कर तावल वार भाजरी,
जिसी दारू माँ आग लाग री
कलियाँदार घाघरी,
पतली कम्मर लचकत चाली ।
रोहतक में पाणी बड्ग्या
रोहतक में पाणी बड्ग्या सुण भैणां हे कोलज में
उडै पड्ढैं दुनिया के लाल जुलम बड़ा भारी हे कोलज में
छोर्यां मैं झांखी पाड़ी एक पट्ढै छोरा हुंसिआर हे कोलज में
ऊं के ऊपर धोला कमीज जुलम बड़ा भारी हे कोलज में
वोह् तो डूब लिया होया जुलम बड़ा भारी है हे कोलज में
ऊं का बूढा बाब्बू रोवै रे मैंने बौत पड्ढाया
मिरे लाल जुलम बड़ा भारी होया हे कोलज में
कोलज में जुलम बड़ा भारी हे कोलज में
ऊं की बूढी माता रोवै हे मनै एक जाया नंद लाल
ऊं की छोटी भैणां रोवै हे कोलज में
मेरै कूण भरेगा भात, जुलम बड़ा भारी हे कोलज में
ऊं की ब्याही तिरिया रोवै हे कोलज में
मनै कर के बैठा गया रांड जुलम बड़ा भारी हे कोलज में
लाला लाला लोरी दूध भरी कटोरी
लाला लाला लोरी दूध भरी कटोरी
लाला की मां पाणी जा, लाला दूध मलाई खा
लाला रे ललणिया रे बारह गज का तणिया रे
चंदा मामा आयेगा दूध मलाई लायेगा
सामण आयो रंगलो कोई
सामण आयो रंगलो कोई आई रे हरियाली तीज !
सास म्हारी प्यारी, गजब कीमारी,
मोकै तौ खंडा दै पीहर को, म्हारी लाड सासुला, प्यारी !
नईं आया थारा नाईं बामण, न माँ-जाया वीर,
राजा की रानी, जहार की रानी,
तो कै आड़ै ई घड़ा देँ पालणो,
म्हारी लाड बहुरिया प्यारी !
बिगर बुलाय धन जाएगी, घट जाएगो आदर-भाव,
राजा की रानी, जहार की रानी,
तू आड़ै ई सामण मान, मेरी लाड बहुरिया प्यारी !
ऊँचै तै चढ़कै देख रइ, तोकै दिवर कहूँ कै जेठ ?
सुघड़ खाती कै, बगड़ खाती कै,
चन्नण को घड़ लियो पालनो, जामें झूले सरिहल रानी ।
अजी आठ खुराड़ा नौ जना, कोई दग-दग जाएँ बन को
राजा की रानी, जहार की रानी,
ऊँची पाल तलायो की, जिते खड़रिया चन्नण को पेड़ ।
खाती आता देख कें कोई रोया छाती पाड़
बिरछ को पौदा, चन्नण को पौदा
डाल-डाल म्हारी काट लै, रै मत काटे जड़ से पेड़ ।
पहलो खुराड़ो मारियो, कोई निकसी दूध की धार ।
राजा की रानी, जहार की रानी,
एकासे दूजो दियो, जासे निकसी खूना धार ।
हरी-हरी चुरियाँ, गोरी-गोरी बहियाँ, कुन पै कियो सिंगार ।
राजा की रानी, जहार की रानी,
थारो राजधन मर गयी, रै धरती माँ गयो समाय !
साढ़ जे मास सुहावणा सुआ रे
साढ़ जे मास सुहावणा सुआ रे
जै घर होता हर का लाल मैं हाली खंदावती
सामण जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं हिंदो घलावती
भाद्ड़ा जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर लाल मैं गूगा मनावती
असौज जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं पितर समोखती
कातक जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं दिवाली मनावती
मंगसर जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं सौड़ भरवाती
पोह जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं संकरात मनावती
माह जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं बसन्त मनावती
फागण जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं होली खेलती
चैत जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं गणगौर पूजती
बैसाख जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं पंखा मंगावती
जेठ जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर लाल मैं जेठड़ा मनावती
बारहए महीना होलिया सुआ रे।
तोडूं मरोडूं तेरा पींजड़ा जल में दूंगी बगाय
तेरी सेवा ना करूं सुआ रे।
म्हारी तो सेवा वै करै राधा ए जो हर आवैगा आज
जेाडूं संगोडूं तेरा पींजड़ा सुआ रे।
और चुगाऊं पीली दाल तेरी सेवा मैं करूं
सास मन्ने नेवरी घड़ा दे री
सास मन्ने नेवरी घड़ा दे री
हे री नेवरी पै नान्ही नान्ही बूंद
नेवरी में बाज्जा घला दे री
बहू तन्ने बाज्जा भावै ए
हे री मेरा लाल लड़ाइआं बीच
बहू मेरा के जीवणा सै री
सास मन्ने नेवरी घड़ा दे री
सास मैं तो पाणी नै गई थी री
सास मैं तो पाणी नै गई थी री
बेटा तो तेरा नंगा खड्या था री
सास मेरी लीली बेच दे री
छेल नै साफा मांगा दे री
सास मैं तो बागां मैं गई थी री
बेटा तो तेरा नंगा खड्या था री
सास मेरे डांडे बेच दे री
छेल ने मुरकी गढ़ा दे री
सास मैं तो कुआं पै गई थी री
बेटा तो तेरा नंगा खड्या था री
सास मेरा दामण बेच दे री
छेल नै कुरता सिमा दे री
सास मैं तो गलिआं मैं गई थी री
बेटा तो तेरा नंगा खड्या था री
सासू बी बहरी सुसरा भी बहरा
सासू बी बहरी सुसरा भी बहरा बहरा सै घर वाला रै
उन बहरां मैं मैं बी बहरी चारूआं का बाजा न्यारा रै
एक राहे बटेऊ न्यूं उठ बोल्या टेसन की राही बता दे रै
धोले के तो लगे पानसै गौरे के ढाई से दे सैं रै
इतणै मैं रुटिहारी आई बलदां का मोल लगै सै रै
नूण मिरच तेरी मां नै गैर्या हम नै क्यूं गाली दै सै रै
रोटी दे कै घर नरै आई सासू तै राड़ मिचाई रै
नूण मिरच तै तन्नै गेर्या मन्नै गाली दिवाई री
हमनै तै बहू बेरा कोन्नी तेरै सुसरै नै पूछूंगी
डांगर चरा के सुसरा आया बहू पीहर जाण नै कह सै रै
कौण कहे कालर में चरा ल्याया डहरां में चर कै आई सै
सासू बी बहरी सुसरा बी बहरा, बहरा सै घर वाला रै
सुणिये मेरे मिन्त कथा
सुणिये मेरे मिन्त कथा।
पंजे गाड़ दिये होणी ने हे होणी बलवान धंसी जा सरवण के घर में
आते ही डिगा दी बुध आण के उस तिरिया की पल में
कुमत्त राणी की बन आई।
सोना को टका दियो हाथ जाय कुम्हरा ते बतलाई
सुण प्रजापत बात समझले बरतन एक बणा दे ऐसा भीतर हो परदा
सुणिये मेरे मिन्त कथा।
ले हंडिया प्रजापत आयो काम करी चितराई को
पंजे गाड़ दिये होनी ने दोष नहीं ईमे काई को
एक में रंधती खटी मेहेरी एक में रंधती खीर
करके सोच कहे यू अंधा या कैसी तकदीर
सकीमी सरवण में आई।
बहुत गए दिन बीत मेहेरी खट्टे की खाई
सरवण ने सुणो जवाब रही ना बाकी
सुण अंधे माई बाप दोजखी पापी
खीर तनें सब दिन ते खाई हुयो तूं अंधा दुखदाई
वाको थाल आप ले लीनो अपनो दियो पिता
सुणिये मेरे मिन्त कथा।
एक ग्राम लियो मुख भीतर थाल पटक दियो धरती में
कुल में घात चला रही तिरिया तू ना चूकी करणी में
सुण तिरिया बदकार अक्ल की मारी
तूं एकली काग उड़ाये पड़ी रह लानत की मारी
ऐसे वचन कहे सरवण ने सरवण बन को जा
सुणिये मेरे मिन्त कथा।
हरे हरे बांस कटा के इसने कावड़ बनवाई
नंगे कर लिये पैर सुरत जने बन खंड की लाई
आ गयो सागर ताल नीर भर लीयो
दसरथ ने मार्यो बाण जुलम कर लीयो
सांस ना सरवण की भटकी बात तो बहुत जबर अटकी
भयानो दसरथ को आयो।
मेरी सुणिये दसरथ बात पिता रह गयो तिसायो
ले पाणी दसरथ आयो ठाकुर नाम सुता
सुणिये मेरे मिन्त कथा।
सूरत सिंह पहुंची बन्धवा ले रे
सूरत सिंह पहुंची बन्धवा ले रे रे तनें कह रही बाहण मां जाई
पहुंची के बंधवा ल्यूं हे इक बिर बागां में जाणा
चन्दरा मैं भाजा आया हे हे मनें रोटी भी ना खाई
चन्दरा भूल गया था हे सुरजकौर न याद दिवाई
चन्दरा पहुंची बांधदे हे कह रहा सै सुरत सिंह भाई
पहुंची ठाके बांध ले रे गंगा में धो के सुखाई
मैं चमरे की जाई रे रे मिट जाएगा सुरत सिंह भाई
चमरे का बण के बंधा लूं रे बांधौ ना बाहण मां जाई
चन्दरा पहुंची बांधी हे पहुंचे पै आंसू आई
चन्दरा साच बता दे किस दुख में आंसू ल्याई
नवमी का दिन धर राख्या रे तेरा जीजा फांसी टूटे
सुरत सिंह कुछ भी न बोल्या हे जीजा के बदले में मर गया
हालत एक गरीब किसान की
कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ।
कितै बणैं थी खीर, कितै हलवे की खुशबू ऊठ रही
हाळी की बहू एक कूण मैं खड़ी बाजरा कूट रही ।
हाळी नै ली खाट बिछा, वा पैत्यां कानी तैं टूट रही
भर कै हुक्का बैठ गया वो, चिलम तळे तैं फूट रही ॥
चाकी धोरै जर लाग्या डंडूक पड़्या एक फाहळी का
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ॥
सारे पड़ौसी बाळकां खातिर खील-खेलणे ल्यावैं थे
दो बाळक बैठे हाळी के उनकी ओड़ लखावैं थे ।
बची रात की जळी खीचड़ी घोळ सीत मैं खावैं थे
मगन हुए दो कुत्ते बैठे साहमी कान हलावैं थे ॥
एक बखोरा तीन कटोरे, काम नहीं था थाळी का
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ॥
दोनूं बाळक खील-खेलणां का करकै विश्वास गये
मां धोरै बिल पेश करया, वे ले-कै पूरी आस गये ।
मां बोली बाप के जी नै रोवो, जिसके जाए नास गए
फिर माता की बाणी सुण वे झट बाबू कै पास गए ।
तुरत ऊठ-कै बाहर लिकड़ ग्या पति गौहाने आळी का
आंख्यां कै मांह आंसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥
ऊठ उड़े तैं बणिये कै गया, बिन दामां सौदा ना थ्याया
भूखी हालत देख जाट की, हुक्का तक बी ना प्याया !
देख चढी करड़ाई सिर पै, दुखिया का मन घबराया
छोड गाम नै चल्या गया वो, फेर बाहवड़ कै ना आया ।
कहै नरसिंह थारा बाग उजड़-ग्या भेद चल्या ना माळी का ।
आंख्यां कै मांह आंसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥
कवि नरसिंह
हो दिल्ली में बिक रही छींट
हो दिल्ली में बिक रही छींट छींट लेते आइयो
मेरठ में चलै मसीन वहीं सिलवाइयो
रास्ते में म्हारा गाम वहीं डट जाइयो
मेरा बाबा काढ़ै धार, नमस्ते करियो
मेरी अम्मा फेरे हाथ नीचे को नव जाइयो
मेरी भाभी की बजनी टूम बिदक मत जाइयो
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