ऐतबार साजिद ग़ज़ल / Aitbar Sajid Ghazal
ऐतबार साजिद ग़ज़ल / Aitbar Sajid Ghazal वो पहली जैसी वहशतें वो हाल ही नहीं रहा ऐतबार साजिद ग़ज़ल / Aitbar Sajid Ghazal वो पहली जैसी वहशतें वो हाल ही नहीं रहा कि अब तो शौक़-ए-राहत-ए-विसाल ही नहीं रहा तमाम हसरतें हर इक सवाल दफ़्न कर चुके हमारे पास अब कोई सवाल ही नहीं रहा तलाश-ए-रिज़्क़ में ये शाम इस तरह गुज़र गई कोई है अपना मुंतज़िर ख़याल ही नहीं रहा इन आते जाते रोज़-ओ-शब कि गर्दिशों को देख कर किसी के हिज्र का कोई मलाल ही नहीं रहा हमारा क्या बनेगा कुछ न कुछ तो इस पे सोचते मगर कभी हमें ग़म-ए-मआल ही नहीं रहा तुम्हारे ख़ाल-ओ-ख़द पे इक किताब लिख रहे थे हम मगर तुम्हारा हुस्न बे-मिसाल ही नहीं रहा सँवारता निखारता मैं कैसे अपने आप को तुम्हारे बाद अपना कुछ ख़याल ही नहीं रहा ज़रा सी बात से दिलों में इतना फ़र्क़ आ गया तअल्लुक़ात का तो फिर सवाल ही नहीं रहा ये हसीं लोग हैं तू इन की मुरव्वत पे न जा ऐतबार साजिद ग़ज़ल / Aitbar Sajid Ghazal ये हसीं लोग हैं तू इन की मुरव्वत पे न जा ख़ुद ही उठ बैठ किस...