तुम से न मिल के खुश हैं वो दावा किधर गया / 'कैफ़' भोपाली

तुम से न मिल के खुश हैं वो दावा किधर गया
दो रोज़ में गुलाब सा चेहरा उतर गया

जान-ए-बहार तुम ने वो काँटे चुभोए हैं
मैं हर गुल-ए-शगुफ्ता को छूने से डर गया

इस दिल के टूटने का मुझे कोई गम नहीं
अच्छा हुआ के पाप कटा दर्द-ए-सर गया

मैं भी समझ रहा हूँ के तुम तुम नहीं रहे
तुम भी ये सोच लो के मेरा ‘कैफ’ मर गया

श्रेणी: ग़ज़ल

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