नज़र-नवाज़ नज़ारों से बात करता हूँ / 'क़ैसर' निज़ामी
नज़र-नवाज़ नज़ारों से बात करता हूँ
सुकूँ नसीब सहारों से बात करता हूँ
उलझ रहा है जो ख़ारों में फिर से ये दामन
ख़िज़ाँ ब-दोश बहारों से बात करता हूँ
तुम्हारें इश्क में तुम से जुदा जुदा रह कर
ग़म-ए-फिराक के मारों से बात करता हूँ
तेरे बग़ैर ये आलम अरे मआज़-अल्लाह
फलक के चाँद सितारों से बात करता हूँ
उफूर-ए-अश्क से ये हाल हो गया ‘कैसर’
यम-ए-अलम के किनारों से बात करता हूँ
श्रेणी: ग़ज़ल
सुकूँ नसीब सहारों से बात करता हूँ
उलझ रहा है जो ख़ारों में फिर से ये दामन
ख़िज़ाँ ब-दोश बहारों से बात करता हूँ
तुम्हारें इश्क में तुम से जुदा जुदा रह कर
ग़म-ए-फिराक के मारों से बात करता हूँ
तेरे बग़ैर ये आलम अरे मआज़-अल्लाह
फलक के चाँद सितारों से बात करता हूँ
उफूर-ए-अश्क से ये हाल हो गया ‘कैसर’
यम-ए-अलम के किनारों से बात करता हूँ
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