ज़मीं का ख़ौफ़ न डर आसमान का होता / 'महताब' हैदर नक़वी
ज़मीं का ख़ौफ़ न डर आसमान का होता
तो इससे क्या यह ज़माना बदल गया होता
अगर कमान से सारे निकल गये थे तीर
तो फिर कोई निशाना ख़ता हुआ होता
इन आँधियों का भरोसा नही कहाँ ले जायें
कोई तो रास्ता अपना बना लिया होता
मेरे जुनूँ का मुदावा तो ख़ैर क्या होता
तुम्हारा फ़र्ज़ तो सर से उ तर गया होता
कहूँ ज़बाँ से भी ऐ मेरे दोस्त आशुफ़्ता
जो तुम न होते तो मैं कब का मर गया होता
श्रेणी: ग़ज़ल
तो इससे क्या यह ज़माना बदल गया होता
अगर कमान से सारे निकल गये थे तीर
तो फिर कोई निशाना ख़ता हुआ होता
इन आँधियों का भरोसा नही कहाँ ले जायें
कोई तो रास्ता अपना बना लिया होता
मेरे जुनूँ का मुदावा तो ख़ैर क्या होता
तुम्हारा फ़र्ज़ तो सर से उ तर गया होता
कहूँ ज़बाँ से भी ऐ मेरे दोस्त आशुफ़्ता
जो तुम न होते तो मैं कब का मर गया होता
श्रेणी: ग़ज़ल
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