पता कहीं से तेरा अब के फिर लगा लाए / 'आशुफ़्ता' चंगेज़ी

पता कहीं से तेरा अब के फिर लगा लाए
सुहाने ख़्वाब नया मशग़ला उठा लाए

लगी थी आग तो ये भी तो उस की ज़द में थे
अजीब लोग हैं दामन मगर बचा लाए

चलो तो राह में कितने ही दरिया आते हैं
मगर ये क्या के उन्हें अपने घर बहा लाए

तुझे भुलाने की कोशिश में फिर रहे थे के हम
कुछ और साथ में परछाइयाँ लगा लाए

सुना है चेहरों पे बिख़री पड़ी हैं तहरीरें
उड़ा के कितने वरक़ देखें अब हवा लाए

न इब्तिदा की ख़बर और न इंतिहा मालूम
इधर उधर से सुना और बस उड़ा लाए

श्रेणी: ग़ज़ल

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