याद महल के वीराने में बाक़ी भी अब क्या होगा / 'महताब' हैदर नक़वी

याद महल के वीराने में बाक़ी भी अब क्या होगा
देखें इन आँखों के आगे अब किसका चेहरा होगा

दूर बहुत दरिया से जिसको ख़ैमें नस्ब कराने हैं
उसको पहले अपने आप के लश्कर से लड़ना होगा

उसके नाम से जलने लगे हैं देखो किन यादों के चिराग़
तनहाई के मंज़र में कुछ देर अभी रहना होगा

हिजरत का दस्तूर यही है घर छोड़ो तो रात गये
वरना इन आँखों को दहलीज़ों मे दफ़नाना होगा

उसके रास्ते में आगे पीछे महताब खड़े होंगे
यही वक़्त है उसके आने का देखो, आता होगा

श्रेणी: ग़ज़ल

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