थोड़ा सा अक्स चाँद के पैकर में डाल दे / 'कैफ़' भोपाली
थोड़ा सा अक्स चाँद के पैकर में डाल दे
तू आ के जान रात के मंज़र में डाल दे
जिस दिन मेरी जबीं किसी दहलीज़ पर झुके
उस दिन खुदा शगाफ मेरे सर में डाल दे
अल्लाह तेरे साथ मल्लाह को न देख
ये टूटी फूटी नाव समंदर में डा ल दे
ओ तेरे माल ओ ज़र को मैं तक्दीस बख्श दूँ
ला अपना माल ओ ज़र मेरी ठोकर में डाल दे
भाग ऐसे रह-नुमा से जो लगता है ख़िज्र सा
जाने ये किस जगह तुझे चक्कर में डाल दे
इस से तेरे मकान का मंज़र है बद-नुमा
चिंगारी मेरे फूस के छप्पर में डाल दे
मैं ने पनाह दी तुझे बारिश की रात में
तू जाते जाते आग मेरे घर में डाल दे
ऐ ‘कैफ’ जागते तुझे पिछला पहर हुआ
अब लाश जैसे जिस्म को बिस्तर में डाल दे
श्रेणी: ग़ज़ल
तू आ के जान रात के मंज़र में डाल दे
जिस दिन मेरी जबीं किसी दहलीज़ पर झुके
उस दिन खुदा शगाफ मेरे सर में डाल दे
अल्लाह तेरे साथ मल्लाह को न देख
ये टूटी फूटी नाव समंदर में डा ल दे
ओ तेरे माल ओ ज़र को मैं तक्दीस बख्श दूँ
ला अपना माल ओ ज़र मेरी ठोकर में डाल दे
भाग ऐसे रह-नुमा से जो लगता है ख़िज्र सा
जाने ये किस जगह तुझे चक्कर में डाल दे
इस से तेरे मकान का मंज़र है बद-नुमा
चिंगारी मेरे फूस के छप्पर में डाल दे
मैं ने पनाह दी तुझे बारिश की रात में
तू जाते जाते आग मेरे घर में डाल दे
ऐ ‘कैफ’ जागते तुझे पिछला पहर हुआ
अब लाश जैसे जिस्म को बिस्तर में डाल दे
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