रंग जमने न दिया बात को चलने न दिया / 'ज़हीर' देहलवी

रंग जमने न दिया बात को चलने न दिया
कोई पहलू मेरे मतलब का निकलने न दिया

कुछ सहारा भी हमें रोज़-ए-अज़ल ने न दिया
दिल बदलने न दिया बख़्त बदलने न दिया

कोई अरमाँ तेरे जलवों ने निकलने न दिया
होश आने न दिया ग़श से सँभलने न दिया

चाहते थे के पयामी को पता दें तेरा
रश्क ने नाम तेरा मुँह से निकलने न दिया

शम्मा-रू मैं ने कहा था मेरी ज़िद से उस ने
शम्मा को बज़्म में अपने कभी जलने न दिया

श्रेणी: ग़ज़ल

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