बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया / 'ज़हीर' देहलवी
बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया
ले तुझे आज़मा के देख लिया
तुम ने मुझ को सता के देख लिया
हर तरह आज़मा के देख लिया
उन के दिल की कुदूरतें न मिटीं
अपनी हस्ती मिटा के देख लिया
कुछ नहीं कुछ नहीं मोहब्बत में
ख़ूब जी को जला के देख लिया
कुछ नहीं जुज़ ग़ुबार-ए-कीन-ओ-इनाद
हम ने दिल में समा के देख लिया
न मिले वो किसी तरह न मिले
ग़ैर को भी मिला के देख लिया
क्या मिला नाला ओ फ़ुग़ाँ से 'ज़हीर'
हश्र सर पर उठा के देख लिया
श्रेणी: ग़ज़ल
ले तुझे आज़मा के देख लिया
तुम ने मुझ को सता के देख लिया
हर तरह आज़मा के देख लिया
उन के दिल की कुदूरतें न मिटीं
अपनी हस्ती मिटा के देख लिया
कुछ नहीं कुछ नहीं मोहब्बत में
ख़ूब जी को जला के देख लिया
कुछ नहीं जुज़ ग़ुबार-ए-कीन-ओ-इनाद
हम ने दिल में समा के देख लिया
न मिले वो किसी तरह न मिले
ग़ैर को भी मिला के देख लिया
क्या मिला नाला ओ फ़ुग़ाँ से 'ज़हीर'
हश्र सर पर उठा के देख लिया
श्रेणी: ग़ज़ल
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