अपने हम-राह ख़ुद चला करना / 'अमीर' क़ज़लबाश
अपने हम-राह ख़ुद चला करना
कौन आएगा मत रुका करना
ख़ुद को पहचानने की कोशिश में
देर तक आईना तका करना
रुख़ अगर बस्तियों की जानिब है
हर तरफ़ देख कर चला करना
वो पयम्बर था भूल जाता था
सिर्फ़ अपने लिए दुआ करना
यार क्या ज़िंदगी है सूरज की
सुब्ह से शाम तक जला करना
कुछ तो अपनी ख़बर मिले मुझ को
मेरे बारे में कुछ कहा करना
मैं तुम्हें आज़माऊँगा अब के
तुम मोहब्बत की इंतिहा करना
उस ने सच बोल कर भी देखा है
जिस की आदत है चुप रहा करना
श्रेणी: ग़ज़ल
कौन आएगा मत रुका करना
ख़ुद को पहचानने की कोशिश में
देर तक आईना तका करना
रुख़ अगर बस्तियों की जानिब है
हर तरफ़ देख कर चला करना
वो पयम्बर था भूल जाता था
सिर्फ़ अपने लिए दुआ करना
यार क्या ज़िंदगी है सूरज की
सुब्ह से शाम तक जला करना
कुछ तो अपनी ख़बर मिले मुझ को
मेरे बारे में कुछ कहा करना
मैं तुम्हें आज़माऊँगा अब के
तुम मोहब्बत की इंतिहा करना
उस ने सच बोल कर भी देखा है
जिस की आदत है चुप रहा करना
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