जो हमने ख़्वाब देखे हैं दौलत उसी की है / 'महताब' हैदर नक़वी

जो हमने ख़्वाब देखे हैं दौलत उसी की है
तनहाई कह रही है रफ़ाक़त उसी की है

कब कोई शहर-ए-शब की हदें पार कर सका
यूँ मुफ़्त जान खोने की आदत उसी की है
 
कार-ए-जुनूँ में कोई दख़्ल ही नहीं
सहरा उसी का और ये वहशत उसी की है

नज़्ज़ारा दरमियान रहे, रतजगा करें
क़ामत उसी का और क़यामत उसी की है

हम भी उदास रात के पहलू में हैं मगर
ठहरी शब-ए-फ़िराक़ जो साअत उसी की है

श्रेणी: ग़ज़ल

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