मिटा न इन को सितम-केश तू ख़ुदा के लिए / 'क़ैसर' निज़ामी

मिटा न इन को सितम-केश तू ख़ुदा के लिए
के अहल-ए-दिल नहीं मिलते कहीं दवा के लिए

ये शर्त रास नहीं आप के तलव्वुन को
कसम न खाइए पाबंदी-ए-वफा के लिए

गुलों की हुस्न-ए-तबस्सुम में झोलियाँ भर दो
तरस रहे हैं वो रानाई-ए-अदा के लिए

अब उस पे क्यूँ नहीं मश्क-ए-सितम रवा आख़िर
वो दिल जो वक्फ हुआ जौर-ए-ना-रवा के लिए

अभी नहीं मयस्सर वो लुत्फ-ए-मय-नोशी
के मुंतज़िर हूँ मैं तौबा-शिकन घटा के लिए

मुझी पे मश्क-ए-सितम आप ने रवा रक्खी
मुझी को छाँट लिया जौर-ए-ना-रवा के लिए

मता-ए-दिल हो के सरमाया जिगर ऐ दोस्त
तेरे सितम के लिए है जेरी जफा के लिए

मरीज़-ए-इश्क को पल भर में होश आ जाए
नसीब हो तेरा दामन अगर हवा के लिए

वा रोब-ए-हुस्न मुसल्लत है मुझ पर ऐ ‘कैसर’
तरस रही है ज़बाँ अर्ज़-ए-मुद्दा के लिए

श्रेणी: ग़ज़ल

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