कोई नग़मा है न ख़ुश-बू है न रानाई है / 'उनवान' चिश्ती
कोई नग़मा है न ख़ुष-बू है न रानाई है
जिंदगी है के जनाज़ों की बरात आई है
आह ये जब्र के महरूम-ए-बहाराँ भी रहूँ
और ईमान भी लाऊँ के बहार आई है
गो तेरे सामने बैठा हूँ तेरी महफ़िल में
दिल-ए-मायूस को फिर भी ग़म-ए-तन्हाई है
सोचता हूँ उसे लब्बैक कहूँ या न कहूँ
प-ए-तजदीद-ए-मोहब्बत तेरी याद आई है
आँख मिलने भी पाई थी के महसूस हुआ
जैसे पहले से मेरी उन की शनासाई है
श्रेणी: ग़ज़ल
जिंदगी है के जनाज़ों की बरात आई है
आह ये जब्र के महरूम-ए-बहाराँ भी रहूँ
और ईमान भी लाऊँ के बहार आई है
गो तेरे सामने बैठा हूँ तेरी महफ़िल में
दिल-ए-मायूस को फिर भी ग़म-ए-तन्हाई है
सोचता हूँ उसे लब्बैक कहूँ या न कहूँ
प-ए-तजदीद-ए-मोहब्बत तेरी याद आई है
आँख मिलने भी पाई थी के महसूस हुआ
जैसे पहले से मेरी उन की शनासाई है
श्रेणी: ग़ज़ल
Comments
Post a Comment