दिल सोज़-ए-आह-ए-गम से पिघलता चला गया / 'क़ैसर' निज़ामी

दिल सोज़-ए-आह-ए-गम से पिघलता चला गया
मैं ज़ब्त की हदों से निकलता चला गया

जो तेरी याद में कभी आया था आँख तक
वो अश्क बन के चश्मा उबलता चला गया

रोका हज़ार बार मगर तेरी याद में
तूफान-ए-इजि़्तराब मचलता चला गया

पुर-कैफ हो गई मेरी दुनिया-ए-जिंदगी
पी कर शराब-ए-इश्क सँभलता चला गया

रोका किया जहाँ नए इंकिलाब को
करवट मगर ज़माना बदलता चला गया

‘कैसर’ न काम आईं यहाँ पासबानियाँ
दौर-ए-ख़िजाँ गुलों को मसलता चला गया

श्रेणी: ग़ज़ल

Comments

Popular posts from this blog

मंगलेश डबराल की लोकप्रिय कविताएं Popular Poems of Manglesh Dabral

Ye Naina Ye Kajal / ये नैना, ये काजल, ये ज़ुल्फ़ें, ये आँचल

Mira Bai Ke Pad Arth Vyakhya मीराबाई के पद अर्थ सहित