ऐनक के दोनों शीशे ही अटे हुए थे / 'अमीक' हनफ़ी

ऐनक के दोनों शीशे ही अटे हुए थे धूल में
हाथ पड़ गया काँटों पर फूलों के बदले भूल में

छूते ही आशाएँ बिखरीं जैसे सपने टूट गए
किस ने अटकाए थे ये काग़ज़ के फूल बबूल में

इश्क़ के हिज्जे भी जो न जानें वो हैं इश्क़ के दावे-दार
जैसे ग़ज़लें रट कर गाते हैं बच्चे स्कूल में

अब रातों को भी बाज़ारों में आवारा फिरते हैं
पहले भँवरे हो जाते थे बंद कँवल के फूल में

मोटी डालों वाले पेड़ के पत्ते कैसे पीले हैं
किस ने देखा कौन रोग है छुपा हुआ जड़ मूल में

श्रेणी: ग़ज़ल

Comments

Popular posts from this blog

अल्लामा इक़बाल ग़ज़ल /Allama Iqbal Ghazal

Ye Naina Ye Kajal / ये नैना, ये काजल, ये ज़ुल्फ़ें, ये आँचल

अहमद फ़राज़ ग़ज़ल / Ahmed Faraz Ghazal