लिया जो उस की निगाहों ने जाइज़ा मेरा / 'मुज़फ्फ़र' वारसी

लिया जो उस की निगाहों ने जाइज़ा मेरा
तो टूट टूट गया ख़ुद से राबता मेरा

समाअतों में ये कैसी मिठास घुलती रही
तमाम उम्र रहा तल्ख़ ज़ाइक़ा मेरा

चटख़ गया हूँ मैं अपने ही हाथ से गिर कर
मेरे ही अक्स ने तोड़ा है आईना मेरा

किया गया था कभी मुझ को संगसार जहाँ
वहीं लगाया गया है मुजस्समा मेरा

जभी तो उम्र से अपनी ज़्यादा लगता हूँ
बड़ा है मुझ से कई साल तजरबा मेरा

अदावतों ने मुझे एतमाद बख़्शा है
मोहब्बतों ने तो काटा है रास्ता मेरा

मैं अपने घर में हूँ घर से गए हुवों की तरह
मेरे ही सामने होता है तज़्किरा मेरा

मैं लुट गया हूँ 'मुज़फ़्फ़र' हयात के हाथों
सुनेगी किस की अदालत मुक़द्दमा मेरा

श्रेणी: ग़ज़ल

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